आधा सेर मजदूरी
-राय साहब पांडेय
सुनबहरी आज सवेरे-सवेरे
ही गोबर पाथने निकल गई थी | कई दिनों से घर से बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला
था | पिछले हफ्ते उसके छोटे बेटे सामू की शादी जो थी | अमीर हो या गरीब, हिन्दुस्तानी
समाज में शादी एक ऐसा प्रयोजन है जिसमें घर-परिवार के लोग स्वभावतः व्यस्त हो ही
जाते हैं | ऐसे भी आज के समय में और चालीस-पचास साल पहले के समय में ज़मीन आसमान का
अंतर हो गया है | अब इवेंट मैनेजमेंट का ज़माना है, पहले लोग मिल-जुल कर सब काम कर
लेते थे | सुनबहरी और उसका बड़ा बेटा दोनों आधा मील दूर अपने मालिक के यहाँ काम
करते हैं | उसका बड़ा बेटा रामू हल-बैल और खेती-बारी का काम करता है जबकि सुनबहरी
मालिक की बहुओं की जरूरतों का ध्यान रखती है | उनके नहाने के लिए पानी का इंतजाम
करती है, उनके धोती-कपड़ों को कछा रती-पछारती है, घर-आँगन की साफ़-सफाई, गोबर-पानी का
सारा काम उसके जिम्मे ही है | अगर कभी-कभार दूसरी काम-वालियाँ नहीं आईं तो समझ
लीजिए सुनबहरी के कान अपना ही नाम सुनते-सुनते पक जाते हैं | सभी नौकरानियों में सुनबहरी
का दर्जा अव्वल है | मालिक और मालकिन के अतिरिक्त कोई उसका नाम लेकर नहीं पुकारता |
बहुओं के लिए तो जैसे वह उनकी चाची है | बहुएँ सचमुच उसका कद्र करती हैं | बिल्कुल
शांत स्वभाव की सुनबहरी का मन अपने घर में उतना नहीं लगता, जितना वह मालिक के यहाँ
खुश रहती है | पूरा दिन कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता |
अब भला बताइए सुनबहरी
क्या करती? इतनी सारी जिम्मेदारियों का बोझ उसके सर पर! सवेरे निकलने के अलावा
उसके पास चारा ही क्या था? सात दिन का गोबर उसे निपटाना था, वह भी नाक बंद करके | जैसे-तैसे दस बजे तक
गोबर का काम निपटा कर, हाथ-मुँह धोकर वह घर में दाखिल हुई | जैसे ही उसने झाड़ू
उठाया, बड़ी बहू ने उसे देख लिया | अब क्या, सारी बहुओं का नाम ले ले कर बुलाने लगी
| बोली- सभी आ जाओ, चाची आ गई हैं | बड़ी बहू चाची के हाथ से झाड़ू छीनकर एक कोने
में फेंक दिया और उसका कंधा दबाकर जमीन पर
बैठने के लिए विवश कर दिया | चाची क्या करती वहीं बैठ गई | इतना मान तो उसे अपनी
बहू से भी नसीब न था! इतने में अन्य बहुएँ भी आ गईं | सभी ने शादी की तैयारियों और
बारात के बारे में पूछताछ शुरू कर दी | छोटी ने तो लड्डुओं की माँग कर दी | बोली-
आज लड्डू कैसे लाती? सवेरे ही आ गयी थी वह भी सीधे पथनउरे में | कल ले आऊँगी |
कैसे कहती- यह तो ब्याह था, गौना तो कई सालों बाद होगा | लड्डू तो बहू की विदाई के
साथ गौने पर मिलता है | जब काफी देर हो गई और बहुएँ वहाँ से हटने का नाम नहीं ले
रही थीं, तो सुनबहरी ने अपनी जान छुड़ाते हुए कहा- अरे आज तुम लोगों को नहाना-धोना
नहीं है क्या? चलो अपने-अपने काम पर | बहुएँ भी कहाँ कम थीं, एक-दूसरे को देखा,
हलके से मुस्कराया और एक साथ बोल पड़ीं- लड्डू तो चाहिए ही चाहिए, ऐसे जान नहीं छूटने
वाली |
सुनबहरी दिन भर काम
में व्यस्त रही | काम इतना ज्यादा था कि दूसरों को नहलाने वाली खुद अपना
नहाना-धोना भूल गई | मालकिन ने खुद आ कर सुनबहरी को कुछ खा-पी लेने को कहा | मालकिन
उसका बहुत ध्यान देती हैं | ऐसा इसलिए भी था कि मालिक ने शख्त हिदायत दे रखी थी- “सुनबहरी
को कोई तकलीफ न हो”|
सुनबहरी के बारे
बहुएँ कुछ ज्यादा नहीं जानती थीं, क्योंकि मालिक नहीं चाहते थे कि उसके गुजरे
दिनों के बारे में घर-परिवार में कोई चर्चा हो | जब कोई बात बताने के लिए मना किया
जाता है तो उसके विषय में जानने की उत्सुकता और तेज हो जाती है | बहुत दिनों से बहुओं
के मन में सुनबहरी के बारे में और अधिक जानने–सुनने की अभिलाषा हिलोरें मार रही थी
| पर किससे पूछें? मालिक तक खबर पहुँचने का अंदेशा हमेशा बना रहता था, फिर उनका
कोप भाजन बनना? बाप रे बाप | अगर मालिक को भनक भी लग गई तो बहुओं की तो कम, मालकिन का जीना दुश्वार
हो जाएगा, ऐसा सोचकर बहुएँ अपना मन मसोस कर रह जाती थीं | भला कौन सुशील बहू
चाहेगी कि उसके कारण उसकी सास पर आफत आए | छोटी बहू ने एक बार कोशिश की थी चाची से
बात करने की | इसके बाद सुनबहरी ने मालिक का घर ही छोड़ दिया था | स्वयं मालिक उसके
घर गए थे उसे मनाने के लिए!
समय बीतता गया |
तकरीबन तीन साल गुजर गए | मालकिन बीमार रहने लगीं | सुनबहरी को इसका आघात सबसे
अधिक था | मालकिन उसके लिए मालकिन नहीं, एक सच्ची दोस्त और संरक्षक भी थीं | वह
उनकी ही सेवा में खुद को समर्पित हो गई | रात में सुनबहरी के घर चले जाने के बाद उनकी
बड़ी बहू यह जिम्मेदारी निभाती थी | इस बीच बड़ी बहू, अपर्णा अपनी सास के काफी करीब
हो गई थीं | छोटी बहू काफी चंचल
और संवेदनशील थी | उसने ही अपर्णा से कहा, “दीदी आप एक बार सुनबहरी चाची के बारे
में माँ जी से बात करिए न | आप को मना नहीं करेंगी |” अपर्णा फिर भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी | आखिर, एक दिन जब मालकिन काफी खुश
दिख रही थीं, अवसर पा कर बड़ी बहू ने कहा, “माँ जी एक बात कहूँ, आप बुरा तो नहीं
मानोगी? बहुत दिनों से हम सब के मन में सुनबहरी चाची के बारे में जानने की ललक है
| आखिर ऐसा क्या है जो कोई इस विषय में बात नहीं करता?” आज मालकिन बिलकुल गुस्सा
नहीं हुईं | शायद वे खुद अपनी बड़ी बहू को इस बारे में बताना चाह रही थीं | ठीक कहा
बहू तूने, “मैं भी इस बात को तुम्हें बताने की सोच रही थी | पर कैसे?, यही नहीं
समझ पा रही हूँ | मैं चाहती हूँ कि तुम हर बात जानो, समझो | कल को तुम्हें ही यह घर
संभालना है | मेरी तबीयत ऐसे भी ठीक नहीं रहती | तुम्हारे बाबूजी को तो जानती
ही हो, पता चल गया तो पूरा घर ही सर पर उठा लेंगे | चलो मैं खुद सुनबहरी से ही बात
करती हूँ |”
अगले दिन आते ही सुनबहरी
मालकिन के कमरे में चली गई | मालकिन के आस-पास होने से ही उसे बड़ा सुकून मिलता था |
मालकिन ने अवसर समझ कर उससे बात करना ठीक समझा | मालकिन कहने लगीं, “अरे सुनहरा, आज
मैं तुमसे अपने मन की बात करना चाहती हूँ, करूँ क्या?” सुनबहरी बोली, “क्या
मालकिन, आज आपको यह क्या सूझ रही है? आप मुझसे बात करना चाह रही हैं, ई तो हमार
भाग है | एमा पूछै वाली का बात है |” नहीं सुनहरा ये बात नहीं है, मालकिन ने बात
आगे बढ़ाते हुए कहा, “मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है, पता नहीं कब क्या हो जाए | मैं
अपर्णा को तुम्हारे बारे में सब कुछ बता देना चाहती हूँ यदि तुम हाँ कहोगी तभी |”
मालकिन जब खुश होती थीं तब सुनबहरी को सुनहरा कह के बुलाती थीं | सुनबहरी मालकिन
के मुख से यह बात सुनकर हक्का-बक्का रह गई | फिर संभलते हुए कहने लगी, “मालकिन आप
मालकिन हो, मैं आपसे क्या कह सकती हूँ? आप जइसन समझो, करो |” मालकिन ने कहा, “नहीं
ऐसी बात नहीं है, मैं चाहती हूँ कि मेरे न रहने के बाद तुम्हारे बारे में कोई
अनाप-सनाप बात न फैले और तुम्हारा अभी जैसा मान-सम्मान बना रहे | यदि तुम नहीं
चाहती हो तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी |” ठीक है मालकिन, आप अइसन सोचत हैं तो बताय
दें लेकिन बड़ी बहू के अलावा ई बात कोई के ना मालूम पड़ै तो अच्छा रही |” मालकिन ने
उसे आश्वस्त करते हुए कहा, “बिलकुल ऐसा ही होगा सुनहरा, मैं पहले अपर्णा से वचन लूंगी,
तभी उसे बताऊँगी और अगर उसने यदि ऐसा न किया तो अपना मुँह नहीं खोलूँगी |” सुनबहरी
अपने काम में लग गई |
सूरज ढल चुका था |
आसमान में अभी भी लालिमा कायम थी | सुनबहरी के लिए इस लालिमा का आज कोई अर्थ नहीं
था | उसे तो कल सवेरे की कालिमा की आशंका थी | एक ठौर मिला था, माँ-बापू के बाद एक
प्यार करने वाला परिवार मिला था, पर क्या उसका मान सम्मान बचा रह पाएगा? खुद में
इतनी खोई हुई थी कि रास्ते में कौन आ-जा रहा है, उसे इसका पता ही नहीं चला | घर
पहुँचने के बाद भी अपनी बहू से बात नहीं की | खाना भी नहीं खाया और बिस्तर पर निढाल
लेट गई | आज उसकी आँखों में एक अजीब सूनापन था | बाहर शोरगुल के बावजूद एक मायूस
सन्नाटा था | रोने का मन कर रहा था, लेकिन आँसू सूख गए थे | खुली आँखों में नींद
कहाँ? रात बीतने के इंतजार के अतिरिक्त कर ही क्या सकती थी?
मालिक के घर सब ने
खाना खा लिया | दूध के गिलास के साथ बड़ी बहू ने मालकिन के कमरे में प्रवेश किया | अपर्णा
ने दूध का गिलास मालकिन की तरफ बढ़ाया | “रख दो बहू, आज मन बड़ा बोझिल सा हो रहा है |
बात करने का दिल नहीं हो रहा, पर बताना जरूरी है | लेकिन तुम एक वचन दो, आज जो मैं
तुमसे कहूँगी उसे तुम किसी को भी नहीं बताओगी |” अपर्णा असमंजस में पड़ गई | खुद को
संभालते हुए बोली, “माँ जी आप यदि ऐसा कह रही हैं तो मैं आपको वचन देती हूँ, यह
बात मेरे अन्दर एक राज ही रहेगी |” मालकिन का मन थोड़ा हल्का हुआ और वे कहने लगीं, “बहू,
सुनहरी पहले ऐसी नहीं थी | खुश मिज़ाज और चंचल, हर चाल में अल्हड़पन न जाने कहाँ से
कूट-कूट कर भरा था उसके व्यक्तित्व में | कुछ ख़ास पढ़ी लिखी भी नहीं थी पर बात-चीत
में शालीन थी | बड़ों के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिए, उसे कभी बताने की जरूरत नहीं
थी | खीसू से उसका ब्याह बचपन में ही हो गया था | गौने के बाद जब वह ससुराल में आई
तो उसकी सुंदरता की चर्चा अगल-बगल के गाँव में भी होने लगी थी | बचपन से ही इतनी
सुन्दर थी कि उसके माँ-बापू को उसका नाम सोचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी | सोने
जैसे मन और तन वाली बेटी का नाम उन्होंने सुनहरी रख दिया | सुनबहरी तो मेरे बेटों
ने उसे बुलाना शुरू कर दिया जब वह किसी बात का जवाब दिए बगैर अपने काम में मशगूल
रहने लगी | सुनहरी के व्यक्तित्व में रूप और गुण का एक बेजोड़ संगम था | अधिकतर
अपने काम से काम रखती थी | ससुराल आते ही घर-परिवार की सारी जिम्मेदारियाँ संभाल
ली | उसका पति ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था पर अपनी मान-मर्यादा के भीतर रह कर अपनी
गृहस्थी चला रहा था | समय बीतते देर कहाँ लगती है, खासकर जब दिन ख़ुशी-ख़ुशी कट रहा
हो | सुनहरी एक बेटे की माँ बन गई | रामू के जन्म के कुछ महीनों के भीतर ही सामू
भी पेट में आ गया | निर्धन परिवार में जन्म लेना भी किसी अभिशाप से कम नहीं होता |
उस पर यदि जाति भी छोटी हो तो धनवान और बिगड़ैल किस्म के तथाकथित ऊँची जाति के आवारा
लोग इन्हें अपनी जूती समझने की भूल अकसर कर ही जाते हैं | खीसू ऐसे ही एक परिवार
के यहाँ काम करता था | पूरे मन से मेहनत कर के अपनी मजदूरी कमाता था | खीसू के
मालिक का नवजवान छोरा और उसके कुछ साथी हमेशा मटरगश्ती करते रहते थे | कहते हैं न ‘गरीब
की लुगाई, सारे गाँव की भौजाई’ | यह कहते-कहते मालकिन रुक गईं |”
थोड़ा समय बीतने के
बाद भी जब मालकिन कुछ नहीं बोल रही थीं तो बहू ने पूछा फिर क्या हुआ माँ जी?
मालकिन ने फिर क्रम पकड़ा और कहने लगीं, “खीसू के मालिक का छोरा, क्या नाम था उसका
हाँ साजन, खीसू को अनेक तरह के प्रलोभन देने लगा | एक दिन खीसू से कहा- अरे
तुम्हारी लुगाई दिन भर घर में बैठी रहती है, उससे कहो घर में आ कर कुछ काम कर दिया
करेगी | सेर, आधा सेर मजदूरी वह भी कमा लेगी | घर-गृहस्थी चलाने में तुम्हारी मदद
भी हो जाएगी | खीसू ने साफ़ मना कर दिया | बोला-भैया वह घर के बाहर मजदूरी नहीं
करेगी | वैसे भी वह पेट से है | खीसू की बात से साजन नाराज तो बहुत हुआ पर सीधे
तौर पर कुछ नहीं कहा | कुछ दिन और बीत गए | खीसू समझा सब ठीक हो गया, पर दुष्ट साजन
और उसके शैतान दोस्त कहाँ मानने वाले थे | उन सब ने एक योजना बनाई और खीसू को कुछ
दिनों के लिए गाँव से बाहर भेज दिया | दो-चार दिन बीतने के बाद भी जब वह नहीं लौटा
तो सुनहरी की चिन्ता बढ़ने लगी | साल भर से कम उम्र के रामू को लेकर खीसू के मालिक
के पास गुहार लगाने पहुँच गई | पर उसके मालिक को तो इसका पता ही नहीं था कि वह कब,
कहाँ और किसके कहने पर गया | फिर भी खीसू के मालिक ने उसको ढाढ़स बंधाया कि उसका
मर्द जल्द ही वापस आ जाएगा | सुनहरी को देख साजन और उसके लम्पट दोस्त भद्दे ताने
कसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे थे | तरह-तरह की अफवाहें उड़ा रहे थे कि खीसू
अपनी लुगाई से तंग आकर घर छोड़ कर भाग गया | कुछ दिन और बीत गए, पुलिस में रिपोर्ट
भी दर्ज कराई गई | पर खीसू का कोई अता-पता नहीं मिला | सुनहरी का रो-रो कर बुरा
हाल था | माँ-बापू तो थे नहीं, कहाँ जाती, क्या करती? दिल पर पत्थर रख कर बच्चे की
परवरिश में लग गई | खुद मजदूरी करने लगी | पर यह उसके दुखों का अंत नहीं था | साजन
और उसके दोस्त अब मनमाने ढंग से उसके घर का चक्कर लगाने लगे, फब्तियाँ कसने लगे और
जोर-जबरदस्ती पर उतारू हो गए |”
सुनहरी की व्यथा
सुनाने वाली मालकिन और उनकी बड़ी बहू दोनों की आँखें नम हो गई थीं | मालकिन ने अपने
पल्लू के कोने से अपनी आँख पोंछते हुए आगे कहना शुरू किया | सुनहरी कई बार खीसू के
मालिक के यहाँ फ़रियाद ले कर गई, लेकिन नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’ | पड़ोसियों ने
उसे तुम्हारे पापा के पास भेजा | साजन और उसके दोस्तों को समझाने और हिदायत देने
के लिए | पर साजन एक बिगड़ा हुआ अमीर बाप का इकलौता बेटा था | वह एक बेकाबू घोड़े की
भाँति था जो हर किसी घुड़सवार को अपने पैर के खुरों से घायल करने में माहिर था |
तुम्हारे पापा के समझाने का कोई असर नहीं हुआ | उसकी हरकतें दिनों-दिन बढ़ने लगीं |
सुनहरी, बिलकुल असहाय, फिर तुम्हारे पापा के पास गुहार लगाने आ पहुँची | नरम दिल
वाले तुम्हारे पापा से उसका क्रंदन देखा न गया | सुनहरी को अपनी गाड़ी में बिठाया, कुछ
आदमी भी गाड़ी में बैठे और साजन के पिता के यहाँ पहुँच गए | सारा वाकया सुनने के
बाद साजन को बैठक खाने में तलब किया गया | तुम्हारे पापा को देखते ही साजन बिफर
पड़ा | जोर-जोर से चिल्लाते हुए अनाप-सनाप बकने लगा | तुम्हारे पापा शांत बैठे रहे,
चुपचाप सुनते रहे | अपने आदमियों को भी शांत कराते रहे | पर साजन शांत नहीं हुआ | और
बोलते-बोलते जब उसने कहा कि सुनहरी तुम्हारी क्या लगती है? रखैल है? बेटी है? |
बैठक को मानो सांप सूंघ गया हो | सभी स्तब्ध, यह क्या हो रहा है? पहली बार
तुम्हारे पापा को लोगों ने गुस्से में कांपते देखा | बगल में खड़े आदमी के हाथ से
लाठी छीनी और दे दनादन शुरू हो गए | लगातार लाठी बरसाते रहे और दहाड़ते हुए कहते
रहे- हाँ यह मेरी बेटी है |”
मालकिन और अपर्णा
दोनों की सिसकियाँ बंध गई | कौन किसे चुप कराए | थोड़ी देर बाद आँसुओं का सैलाब थमा
तो मालकिन बुदबुदाते हुए आगे कहने लगीं, “साजन लहू-लुहान वहीं ढेर हो गया | उसके
पिताजी क्या कहते? तुम्हारे पापा का इतना दबदबा था और लोगों में इतना सम्मान था कि
पुलिस को एक भी गवाह नहीं मिला | सुनहरी तो वहीं बेहोश हो गई | आनन-फानन में उसे नजदीकी
अस्पताल में पहुँचाया गया, जहाँ उसने सामू को जन्म दिया | अब सुनहरी और उसके बच्चे
हमारी जिम्मेदारी थे | तुम्हारे पिताजी की शख्त चेतावनी थी कि इस घटना का जिक्र कोई
कभी नहीं करेगा | घरवालों की तो छोड़ो, दूसरे गाँव वाले भी अपनी जबान को जैसे सिल रखा
हो | तब से अब तक इस दुर्घटना की कोई चर्चा नहीं हुई | जब सामू दो बरस का हो गया
तो सुनहरी खुद तुम्हारे पापा के पास आई और इस घर में काम करने की मंशा जाहिर की |
तभी से वह यहाँ इस घर में अपने मन से जो चाहे करती है |”
अपर्णा और उसकी सास
शांत हो गए | सब कुछ कह सुन कर दोनों अब हल्का महसूस कर रहे थे | कब किसको नींद
आई, कब सवेरा हुआ, दोनों को इसकी खबर नहीं हुई | छोटी बहू ने आकर जगाया तब उनकी
नींद खुली | अब सब कुछ पहले जैसा ही था | सुनहरी रोज की भांति आज भी अपने काम में
लग गई | कोई किसी से बात नहीं कर रहा था | पर छोटी बहू थोड़ी बेचैन लग रही थी |
अपर्णा अचानक सुनहरी के सामने आकर खड़ी हो गई | सुनहरी जब काफी समय तक आँख झुकाए खड़ी
रही, तब अपर्णा ने धीरे से सुनहरी की ठोड़ी पकड़ी और उसकी आँखों में आँख डाल कर देखा
| दोनों एक दूसरे के गले लग कर एक दूसरे की पीठ भिंगोते रहे | बिना कुछ कहे सुने
सब कुछ कह सुन लिया | छोटी बहू अब बार-बार अपर्णा दीदी के चक्कर लगा रही थी | बड़ी
बहू थी कि कुछ बोलने को तैयार ही नहीं थी | हार कर छोटी बहू ने सीधे-सीधे पूछ ही
लिया, “दीदी, क्या हुआ माँ जी ने कुछ बताया?” अपर्णा ने छोटी की तरफ इस तरह देखा
कि जैसे कुछ समझी ही नहीं और उसे झिड़कते हुए आगे बढ़ गई | छोटी बहू हैरान, परेशान |
कुछ समझ नहीं पा रही थी | छोटी नाराज हो कर अपने कमरे में चली गई और दिन भर बाहर
नहीं निकली | अपर्णा को अहसास हुआ कि आखिर छोटी की जगह वह खुद होती तो क्या करती?
वह उसके कमरे में गई और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “छोटी, कुछ बातें
ऐसी होती हैं जिन्हें हमें नहीं जानना चाहिए | अगर बिना जाने ही सब कुछ ठीक चल रहा
है तो क्यों माथापच्ची करें? मैंने माँ जी को वचन दिया है किसी से कुछ न कहने का |
क्या तुम चाहती हो मैं माँ जी को दिया अपना वादा न निभाऊँ?” छोटी समझदार थी | बोली-
दीदी ऐसी बात है तो मैं आपकी सौगंध खाकर कहती हूँ आज के बाद इस बात को अपनी जबान पर कभी नहीं लाऊँगी | देवरानी-जेठानी का
सुखद मिलन हो गया |
कहते हैं न समय सभी
हरे घाव भर देता है | इस बार भी ऐसा ही हुआ | इस संसार में ऐसे मालिकों–मालकिनों, सुनहरियों
और साजनों की कोई कमी नहीं है | संसार है चलता ही रहेगा | यह न तो पूरे सत्य से
चलता है और न ही पूरे असत्य से | सत्य-असत्य दोनों की भागीदारी कायम थी, आज भी है
और भविष्य में भी रहेगी | जरूरत है अच्छाई और बुराई के भेद को परखने की और
सामंजस्य बना कर उसे अमल में लाने की |