सपने अधूरे भी अच्छे
-राय साहब पांडेय
सपने हसीन क्यों होते है?
क्योंकि वे पूरे नहीं होते?
हसीना बेजान क्यों हो जाती है?
क्योंकि वह मिल जाती है?
सपने देखने का भी एक अंदाज़ होता है,
कोई देखने से ही खुश तो कोई खुशफहमी का शिकार होता है,
आधे अधूरे सपने भी अच्छे लगते हैं,
क्योंकि उनके पूरे होने का सपना अधूरा जो होता है,
अभी नहीं तो फिर कभी सच होने का अहसास जो होता है |
सपने सबके होते हैं,
केवल गृहस्थों और बेरोजगार नवजवानों के ही नहीं,
लकड़ी के सहारे खिसकने वाले वृद्धों के भी,
साधुओं-सन्यासियों के भी,
सीढ़ियों पर स्नान करते श्रद्धालुओं के भी,
खाली कटोरों के खनखनाने की आस लिए भिखारियों के भी,
आरती के दीप दिखाने वालों के भी,
और तिलक लगाने के लिए लालायित पुजारियों के भी,
इन सपनों के पूरे होने की आस ही तो,
सपनों को और हसीन बनाता है,
इसीलिए तो सपने होते हैं अधूरे भी अच्छे |
डालियों के पत्तों के भी सपने होते हैं,
तभी तो उन्हें भी इंतजार होता है पतझड़ का,
ख़ुद के गिरने का, मिट्टी में मिलने का, सड़ने और गलने का,
बिना किसी शिकवे के खुश हैं कि बहार तो आएगी,
उनके लिए न सही, उनके कपोलों के लिए ही |
सबका सपना मनी- मनी तो नहीं होता,
किसी का दो जून की रोटी का भी होता है,
चैन से जीने के लिए भी एक सपना है जिसका मोल होता है,
जो बिकता है, बार-बार बिकता है, रीसेल में दाम बढ़ता है,
जिसे खरीदना पड़ता है, जिसके सौदागर होते हैं, शब्द्बाज़ होते हैं,
सुन्दर नारों में पिरो कर परोसा जाता है,
कल के लिए कुर्बानी देने को तैयार होने के लिए,
कुछ तो शिकार होते हैं, कुछ का शिकार होता है |
मासूम आँखों की पलकों को झपकाते रहना,
आज के लिए नहीं तो कल के सपनों के लिए ही सही,
लाल रेशमी धागों की छोटी पर मजबूत डोरी बन के सपना,
फिर से बार-बार आती रहे-जाती रहे,
खुली आँखे तो निहारती हैं पर शून्य में, व्योम में, अनंत में,
या फिर सूख जाती हैं फिर से कभी भी न जिन्दा होने के लिए,
टूटने दो सपनों को, विखरने दो सपनों को, मरने भी दो सपनों को,
पर एक कोने में जब तलाशो तो मिलने भी दो सपनों को,
टूटना, विखरना, मरना और फिर जिन्दा होना ही इनकी नियति है,
पर बेचना? सपना देखने वालों का नहीं, दिखाने वालों का काम है,
भले हों अधूरे, पर बिकना नहीं,
क्योंकि सपने अधूरे भी होते हैं अच्छे...
क्योंकि सपने अधूरे भी होते हैं अच्छे |

