Tuesday, 10 March 2020

फितरत



फितरत 

-राय साहब पाण्डेय 
जब भी किसी ने चाहा ,
मुट्ठी या बाहों में भर लिया,
आसमां को देखा किसी ने,
कभी कोई गिला किया ?

  
जब भी किसी ने चाहा ,
तोड़ लिया या जमीं पे गिरा दिया,
सितारों की बात अलहदा ,
ग़मगीन क्या कभी  हुआ ?

अंगारे तो तपिश देते हैं,
खुद की हस्तियाँ मिटा-मिटा,
पर बेखबर इस आंच से ,
आशियाना भी खाक हो गया |

पानी-हवा  निर्बाध बहते,
सीमाओं की परवा किए वगैर ,
हम खुद ही बेगैरत इतने,
कि इसमें भी जहर मिला दिया |




धरती को खुद का आसमां,
कब से बोझ लगने लगा ?
इंसान की फितरत है कि ,
धरती को बोझ बना दिया |


Wednesday, 4 March 2020

ईश्वर-अल्लाह की हार



 ईश्वर-अल्लाह की हार 
-डॉ  राय साहब पाण्डेय
रूह काँप उठेंगी, 
आने वाली नस्लें जब पूछेंगी,
स्वर्गों-नरकों में भी,
क्या चैन तुम्हें मिल पायेगा ?

करते हो  अपमान धरम का,
अपनी दंगाई  करतूतों से,
सह सकोगे भार जमीरों पर,
क्या जिन्दा-मुर्दा लाशों का ?

शान्ति-अमन का मार्ग छोड़,
निर्दोषों की बली चढाते,
अपनों को खोने वालों के,
आँसू के मोल चुकाओगे ?

कुछ भी हासिल कर न सकोगे,
बस दंगाई बन रह जाओगे ,
राज करोगे कब तक आखिर, 
उन्मादों के हथियारों से |  

विश्वास-प्रेम के बंधन का,
मोल अगर ना समझ सके,
लानत है इस पैदाइश  की ,
तुलसी-कबीर की धरती पर |

क्या खोया उन लोगों ने,
जो जहाँ छोड़ कर चले गये,
तुम भी कवलित हो जाओगे, 
खुद सर्वनाश  अपना कर के |

तुम समझो तुम तो जीत गए, 
वो समझें  वो भी जीत गए ,
भूल गए हो आखिर दोनों, 
ईश्वर- अल्लाह क्यों हार गए ?