Tuesday, 10 March 2020

फितरत



फितरत 

-राय साहब पाण्डेय 
जब भी किसी ने चाहा ,
मुट्ठी या बाहों में भर लिया,
आसमां को देखा किसी ने,
कभी कोई गिला किया ?

  
जब भी किसी ने चाहा ,
तोड़ लिया या जमीं पे गिरा दिया,
सितारों की बात अलहदा ,
ग़मगीन क्या कभी  हुआ ?

अंगारे तो तपिश देते हैं,
खुद की हस्तियाँ मिटा-मिटा,
पर बेखबर इस आंच से ,
आशियाना भी खाक हो गया |

पानी-हवा  निर्बाध बहते,
सीमाओं की परवा किए वगैर ,
हम खुद ही बेगैरत इतने,
कि इसमें भी जहर मिला दिया |




धरती को खुद का आसमां,
कब से बोझ लगने लगा ?
इंसान की फितरत है कि ,
धरती को बोझ बना दिया |


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