फितरत
-राय साहब पाण्डेय
जब भी किसी ने चाहा ,मुट्ठी या बाहों में भर लिया,
आसमां को देखा किसी ने,
कभी कोई गिला किया ?
जब भी किसी ने चाहा ,
तोड़ लिया या जमीं पे गिरा दिया,
सितारों की बात अलहदा ,
ग़मगीन क्या कभी हुआ ?
अंगारे तो तपिश देते हैं,
खुद की हस्तियाँ मिटा-मिटा,
पर बेखबर इस आंच से ,
आशियाना भी खाक हो गया |
पानी-हवा निर्बाध बहते,
सीमाओं की परवा किए वगैर ,
हम खुद ही बेगैरत इतने,
कि इसमें भी जहर मिला दिया |
धरती को खुद का आसमां,
कब से बोझ लगने लगा ?
धरती को बोझ बना दिया |
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