इंसानियत और मज़हब
इंसानियत और मजहबों के किस्से कोई नए नहीं,
फिर भी अगर दोहरायें तो कोई हर्ज़ नहीं |
दोनों के रिश्ते गहरे और पुराने हैं ,
फिर भी एक शास्वत तो दूसरा परिवर्तन है |
एक प्यार, प्यार बस प्यार से भरपूर है ,
तो दूसरा अड़कन और ऐठन में मशगूल है |
एक के तार बस दिल से जुड़ते और सुलझते हैं,
तो दूसरे के तार दिल और दिमाग में उलझते हैं |
दोनों के पास ताले और चाभियाँ हैं , पर
एक खुला आसमान तो दूसरा बंद दरवाजा है |
दोनों के पास कहने को आँखे हैं , पर
एक में बस प्रकाश तो दूसरे में टिमटिमाहट है |
एक गरुड़ है तो तो दूसरा नागपास ,
एक भूल भुल्लैया तो दूसरा आजाद है |
- राय साहब पाण्डेय