Sunday, 11 December 2022

इंसानियत और मज़हब

 

                                                                                इंसानियत और मज़हब

इंसानियत और मजहबों के किस्से कोई नए नहीं,

फिर भी अगर दोहरायें  तो कोई हर्ज़ नहीं    |

दोनों के रिश्ते गहरे और पुराने हैं ,

फिर भी एक शास्वत तो दूसरा परिवर्तन है  |

एक  प्यार, प्यार बस प्यार से भरपूर  है ,

तो दूसरा अड़कन और ऐठन में मशगूल है |

एक के तार बस दिल से जुड़ते और सुलझते हैं,

तो दूसरे के तार दिल और दिमाग में उलझते हैं |

दोनों के पास ताले और चाभियाँ  हैं , पर 

एक खुला आसमान तो दूसरा बंद दरवाजा है |

दोनों के पास कहने को आँखे हैं , पर

एक में बस  प्रकाश  तो दूसरे में  टिमटिमाहट है |

एक  गरुड़ है  तो तो दूसरा नागपास ,

एक भूल भुल्लैया तो दूसरा आजाद है |


                                           - राय  साहब पाण्डेय 





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