शब्द-भेद
-राय साहब पाण्डेय
आँखें न मिल सकीं, बस वो झुक गईं,
बिन कहे ही अनकही सुन ली गई,
मैल मन-भेदों के जब-जब मिट गए,
आँसुओं में शब्द मिल कर बह गए |
शब्द ही हैं गाँठ बुनते रिश्तों के धागों में,
और शब्द ही हैं जोड़ते बिन गाठ के रिश्ते,
शब्द मिश्री युक्त घोल इसको संजोते,
सब्र टूटा, जुबाँ फिसली, हो गए रिश्ते विषैले |
शब्दों के विष पीने से भी चलती है जिंदगी,
सुलगती है धुआं बन के जलती है जिन्दगी,
धधकाना भी चाहो अगर तो राख ही बचती,
इस राख से न जिस्म और न जान ही सजती |
शब्दों के घाव शब्द से है कौन भर सके?,
निशब्द भी रहना पड़े तो आँसुओं में घोल,
मोल-तोल, समझ बोल शब्द भाव ,
उतरे हैं मन के बोझ, तभी पूजे घाव |
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