लोकतंत्र का नया गीत
जनता ने यह पतवार सौंप दी माझी तेरे
हाथों में,
डुबा रहे यह सुंदर नैया आज बीच मझ धार में?
कितने आश्रित बिलख रहे हैं सोचो
उस संताप की,
भूल गए क्या कीमत होती निर्दोषों
के प्राण की?
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
देख रही है जनता सब कुछ सांठ-गाँठ
की चाल को,
तन ढकने से छुपा न सकते मन
की इस कालिख को |
शर्म नहीं क्या आती तुमको
अपने ही व्यवहार पर?
दरबार लगाना कब छोड़ोगे बाबाओं
के द्वार पर?
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
रामों और रहिमों को लज्जित
कर रहते शान से,
करते स्वयं घृणित कार्य उपदेश हैं देते ध्यान से
|
हैरत और अंध भक्ति दो इनके महा
हथियार हैं,
तर्क-कुतर्क से कौमों में ये
बोते नफरत बीज हैं ||
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
आश्रम खोल ये नीच पुजारी बन
बैठे डेरेदार हैं ,
मुफ्तखोर, ठगहार ये बाबा करते धर्म अपमान हैं |
जनता समझ चुकी इनको अब
नेताओं की बारी है,
प्रजातंत्र में लोक मतों की
मर्यादा सब पर भारी है ||
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
खूनी कातिल लुच्चों का भी साथ
तुम्हें मंजूर सदा
हो जाए चाहे भोली-भाली जनता
तुमसे जुदा-जुदा |
कुर्सी की ताकत पर इतना
अभिमान नहीं है अच्छा
सुधरो और समय के रहते कर लो
मन को सच्चा ||
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
कर्म सफल है करता जीवन चमत्कार
का रोग नहीं,
नेता हों या बाबा, कसो कसौटी
वरना कोई वोट नहीं |
न्याय चाहिए अगर यहाँ तो
साहस धीरज ही मूल है,
छत्रपती और साध्वी को भी शत-शत
नमन जरूरी है ||
वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्,....
-राय साहब पांडेय




