A Short Trial that changed the Judgement
(एक पुराने सच्चे मुक़दमे
पर आधारित)
-राय साहब पांडेय
स्थान : बॉम्बे हाई कोर्ट
वर्ष : प्री-1960
केस : आपराधिक 307
केस : आपराधिक 307
सरकारी वकील
(अधिवक्ता अभियोजन पक्ष) : माय लार्ड, पोस्टमैन का बयान और पुलिस का बयान सेम टू सेम, डू टू डू है | लेकिन पोस्टमैन
दो लब्जों के लिए झूठ बोल रहा है | वादी (अभियोगी) ने पोस्टमैन को बताया कि मुजरिम
(अभियुक्त) ने ही उसे चाकू मारा और पोस्टमैन ने भी मुजरिम को चाकू मारते हुए देखा |
अधिवक्ता (
बचाव पक्ष ) : माय लार्ड, पोस्टमैन कोई गवाह नहीं है | वह शिकायतकर्ता है |
पूरे कोर्ट
रूम में सन्नाटा छा जाता है
पोस्टमैन (
मन में ) : यह तो बात बेवजह फंस रही है | सारी मेहनत पर पानी फिर रहा है | दरअसल
वह दोनों को जानता है | पोस्टमैन न्यायाधीश की तरफ देखता है | अचानक न्यायाधीश की
निगाह पोस्टमैन पर पड़ती है | पोस्टमैन हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है |
न्यायाधीश : पोस्टमैन कुछ कहना चाहते
हो?
पोस्टमैन : यहाँ कुछ ऐसी सशंकित बात उत्पन्न हो गई है |
अगर हुजूर की इजाज़त हो तो मैं कुछ कहना चाहता हूँ |
न्यायाधीश : पूरी इजाज़त है |
पोस्टमैन : हुजूर जिस रात यह वाकया हुआ उस रात मैं वादी
के चक्की में ही सोया हुआ था | इसके पहले मैं कभी भी वहाँ रात को नहीं रुका, यद्यपि
मैं वादी को जन्म से ही जानता हूँ | उस रात बहुत तेज आँधी-तूफ़ान आया और बेमौसम
बरसात हुई | आँधी और बारिश इतनी तेज थी कि बिजली गुल हो गई | लगातार बिजली की चमक
और बादलों के गड़गड़ाहट बीच कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था | बारिश इतनी ज्यादा हुई कि
सड़क पर हर जगह पानी-पानी हो गया था | ऐसी अँधेरी रात में एक आदमी चक्की के अन्दर
घुसा और कुछ बड़बड़ाते हुए वादी से उलझ गया | मैंने समझा चक्की में अनाज पिसाने के
लिए कोई आया होगा और कुछ कहासुनी हो गई होगी, इसलिए गाली-गलौज कर रहा होगा | वादी नींद
में था अतः उसे भी कुछ समझ नहीं आया | लेकिन जब वह घायल होकर कराहने लगा तो मैं
समझा यह तो मामला कुछ संगीन लग रहा है | हुजूर, उस अँधेरी रात में कुछ नहीं सूझ
रहा था | मैं चक्की में इधर-उधर हाथ-पाँव मारने लगा कि कहीं कुछ मिल जाए और मैं हमलावर
को खदेड़ सकूँ | सौभाग्यवश एक पुराना छाता मिल गया | मैं उस छाते को अँधेरे में फटकारने
लगा | छाता कहाँ पड़ रहा है किसको लग रहा है, कुछ पता नहीं चल रहा था | मैं किसी
तरह हमलावर को भगाने में कामयाब रहा | कुछ दूर तक उसका पीछा भी किया पर उस घुप
अँधेरे में अधिक दूर तक उसका पीछा नहीं कर सका | रास्ते में जगह-जगह बिजली के
खम्भे और पेड़ सड़कों पर गिरे हुए थे | जल्दी में मैं वापस फिर चक्की में आ गया |
इधर वादी बुरी तरह घायल था | मैंने अगल-बगल से कुछ लोगों को इकट्ठा किया और घायल
को अस्पताल पहुँचाया | फिर घायल के सगों को सूचित किया | जब और लोग अस्पताल पहुँच
गए तब मैंने थाने जाकर शिकायत दर्ज कराई |
उस समय थाने
में इंस्पेक्टर परब की ड्यूटी थी | उन्होंने कहा, “पोस्टमैन केस की पक्की एफ. आई.
आर. बनाने में कुछ वक्त लगेगा, तुम्हें इंतजार करना पड़ेगा |” मैंने उनसे अनुमति
लेकर फिर आ जाने को कहा | अस्पताल होते हुए घर जाने के बाद पुनः पुलिस थाने आने
में मुझे करीब पाँच घंटे लग गए | इस बीच थाने में दूसरे इंस्पेक्टर आ गए थे | मिस्टर तम्बाकूवाला
| मैं उनके पास पहुँचा और एफ. आई. आर. की कॉपी ली और पढ़ने लगा | उसमें दोनों अमुक
बातें जो सरकारी वकील साहब ने कही, वह भी लिख दी गई थी | मैंने हस्ताक्षर करने से
मना कर दिया तो मिस्टर तम्बाकूवाला हमें जद्द-बद्द सुनाने लगे | मैं साइन करने से
मना करता रहा | इस बीच बगल में बैठे दूसरे इंस्पेक्टर ने कहा, “पोस्टमैन तुम क्यों
परेशान हो रहे हो? तुम भले आदमी हो साइन करके जाओ | कोर्ट में जो कुछ कहना हो कहना
|” हुजूर, मैंने साइन कर दिया |
न्यायाधीश : पुलिस इंस्पेक्टर की तरफ देखते हुए पूछा,
“आपके यहाँ कोई परब इंस्पेक्टर हैं?
पुलिस : जी, हुजूर |
न्यायाधीश : उन्हें तुरंत कोर्ट में हाजिर किया जाए |
करीब एक
घंटे बाद इंस्पेक्टर परब कोर्ट में दाखिल हुए और अपना पैर पटकते हुए एक जोरदार सल्यूट
ठोंका |
न्यायाधीश : इंस्पेक्टर परब आप पोस्टमैन को जानते हैं?
इंस्पेक्टर
परब : जी, हुजूर |
न्यायाधीश : आप ने इनकी कंप्लेंट लिखी थी?
इंस्पेक्टर
परब : जी, हुजूर |
न्यायाधीश : आप
ने इनकी कंप्लेंट लिखी तो इनका साइन अपने सामने क्यों नहीं लिया?
इंस्पेक्टर
परब : हुजूर मैं उस रोज उच्च ताप से पीड़ित
था और जल्दी घर चला गया था |
न्यायाधीश : आप
ने अमुक दो बातें इनकी कंप्लेंट में लिखी थी?
इंस्पेक्टर
परब : जी नहीं, हुजूर |
न्यायाधीश : आप जा
सकते हैं
इंस्पेक्टर
परब ने पुनः एक जोरदार सल्यूट ठोंका और कोर्ट के बाहर चले गए | कोर्ट की उस दिन की
कार्यवाही स्थगित हो गई |
दूसरे दिन और
गवाहों के बयानात लिए गए | अंततः कोर्ट की सुनवाई समाप्त हुई और फैसले की घड़ी आ गई
|
कोर्ट में
पुनः सन्नाटा पसरा था | अभियोजन और अभियुक्त दोनों पक्षों के लोग सांस रोके कोर्ट
में बैठ गए और न्यायाधीश की प्रतीक्षा करने लगे |
कोर्ट में
न्यायाधीश का प्रवेश हुआ | उन्होंने अपना फैसला सुनाया | अभियुक्त बा- इज्जत बरी
हो गया |
पोस्टमैन ने
संतोष की सांस ली क्योंकि उसने घायल को अस्पताल में समय से भरती कराकर जान बचाने
और अभियुक्त को कोर्ट से बरी कराने में सार्थक भूमिका निभाई | घायल और अभियुक्त
दोनों आजीवन पोस्टमैन का उपकार मानते रहे |

बेहतरीन प्रस्तुति।
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