Sunday, 13 August 2017

उलझन की ख़ामोशी



उलझन की ख़ामोशी

मुझमें भी तुम, तुझमें भी तुम
फिर हममें उन्माद व्याप्त क्यों?
  राम-रहीम के पावन रिश्तों में    
गूंजे उलझन की ख़ामोशी क्यों?


चर में अचर, अचर में चर, फिर  
ऊंच-नीच का भेद व्याप्त क्यों?  
संसार में पैठे इस कोलाहल से  
गूंजे उलझन की ख़ामोशी क्यों?
                                                                                
तिमिर-मिहिर का गहरा नाता  
ज्ञान-दंभ का दंश व्याप्त क्यों?
ब्रह्माण्ड के इस नश्वर स्वर में  
गूंजे उलझन की ख़ामोशी क्यों?


 सत्यमेव जय-घोष ही होता 
     फिर सत्य स्वर्ण  से आवृत क्यों?
जग के इस ढोंगी आडंबर में
गूंजे उलझन की ख़ामोशी क्यों?


पपिहा प्यासा भले मरे पर
आस तजे ना स्वाती का क्यों?
अप्रतिम धैर्य का यह प्रतीक
गूंजे उलझन की खामोशी क्यों?


हिंसक प्रतिवादों से उलझा मानस
लिप्त हो गया थोथे गुरूर में,
दृष्टि विहीन लोचन ही कारण
गूंजे उलझी ख़ामोशी बन मन में |


-राय साहब पांडेय


















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