Wednesday, 9 May 2018

निर्गुन -एक भजन





निर्गुन – एक भजन

-राय साहब पाण्डेय 
इहलोक परलोक का बंधन,
एक तार का बस गठबंधन,
आती जाती तब तक माया,
   बटोही रे इतना क्यों इठलाया?  

बुद्धि, विवेक का दंभ जताया,
कह सुन अपना और पराया,
खुद रोया और इतर रुलाया,
पथिक रे इतना क्यों इठलाया?

व्यर्थ ग़रूर करे जिस पर तूँ ,
लवनी रूप अरु कंचन काया,
माटी  थी माटी में मिल गई,
राही रे इतना क्यों इठलाया?

गफ़लत में ही उमर कट गई,
 सोचूँ, क्या खोया ? क्या पाया?
 भाया, मिले राम ना  माया,  
मुसाफिर इतना क्यों इठलाया?

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