Thursday, 5 July 2018

बकरे की खैर






3: बकरे की खैर
-राय साहब पाण्डेय 

जाड़े के दिनों में शिवसागर में न्यूनतम तापमान 14 डिग्री सेल्सिअस के आस-पास तक पहुँच जाता है और सुबह में अक्सर अच्छी-खासी ठण्ड पड़ती है | एक दिन सुबह-सुबह मटरू लंगड़ाते हुए घर पर आ धमके | मन-ही मन सोचा- पता नहीं आज क्या मुसीबत ले कर आए हैं | फिर भी मैंने उन्हें इत्मीनान से बैठने के लिए आश्वस्त किया | मुझे पूरा यकीन है धर्मपत्नी ने उनको देखते ही जरूर सोचा होगा: कहाँ- कहाँ से लोगों को पाल लेते हैं | मैंने पूछा, "क्या बात है मटरूजी लंगड़ा काहे रहे हो ?” अपने दाएँ पैर को आगे बढ़ाते हुए बोले, “ठोकर लग गई है |” सचमुच अंगूठे का नाखून निकल गया था और उस पर ढेर सारा खून जमा हो गया था | ऐसा प्रतीत हो रहा था उनका पैर असावधानी वश  अचानक किसी भारी पत्थर से टकरा गया था | खुले पैर को जाड़े में जब चोट लगती है तो ऐसा ही होता है | दर्द का आभास थोड़ी देर में होता है | खैर, उनका पैर धुलवाने के बाद उस पर एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट लगवाया गया | चाय पीने के बाद मैंने पूछा, “मटरूजी, एकदम सुबह-सुबह, कुछ विशेष बात है क्या ?” मुँह से कुछ बोलते, उसके पहले ही अपनी जेब से एक मनी आर्डर फॉर्म निकाला और मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले, “भरना है” | “कहाँ से फॉर्म लिया था, कुछ पैसे भी दिए थे क्या”, मैंने पूछा | मटरू अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे, “बिना पैसे के कौन देगा | फॉर्म ले कर खिड़की पर जब नंबर लगाऊंगा और खिड़की वाले बाबू को अगर छुट्टे पैसे गिनकर दे दिया तो तो वह मेरा फॉर्म और पैसा दोनों वापस कर देगा और दूसरे को बुला लेगा |” “ऐसा क्यों“, मैंने उत्सुकता वस पूछ लिया | मटरू ने समझाना शुरू किया, “मान लीजिए 100 रुपए का मनी आर्डर करना है और उसकी लगवाई मिला कर 102 रुपए दिया तो पैसा वापस | और 105 रुपए दिया तो तुरंत रसीद हाथ में |”  मैं ताड़ गया | यहाँ भी कमीशन खोरी |

“ठीक है, मैं भेज दूंगा, आप मुझे दे दीजिए”, मटरू के कुछ पैसे बचाने की नीयत से मैंने सुझाया | “घर से चिट्ठी आई है, बहुत जरूरी है | किसी से उधार ले कर कुछ काम कराया है, बच्चा बीमार रहता था”, मटरू ने पैसा जल्दी भेजने का कारण समझाते हुए बताया | “बच्चा बीमार रहता था तो काम क्या कराया? डॉक्टर से इलाज़ करवाना था”, मैंने यों ही पूछ लिया | मटरू सकुचाए, पर अपनी जो कथा सुनाई वह आज भी हिंदुस्तान के गांवों की, खासकर गरीब तबके के लोगों की, हकीकत बयाँ करती है |

मटरू बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण जिले के मूल निवासी थे | मोतिहारी इस जिले का मुख्यालय है | कोई भी व्यक्ति जो गाँधीजी के बारे में थोडा भी पढ़ा होगा, वह चंपारण का नाम अवश्य जानता होगा क्योंकि यहीं से उन्होंने अपना राजनीतिक आंदोलन शुरू किया था | बिहार का यह भूखंड नेपाल की सीमा से सटा हुआ है | पूर्व में यह राजा जनक के राज्य का एक अटूट हिस्सा था | मटरू का अपना पैत्रिक निवास केसरिया के पास था | केसरिया पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। मटरू का गाँव भी गंडक के आस-पास स्थित था, जहाँ बाढ़ से हर साल तवाही आम बात थी | मटरू की अपनी कोई खेती-बाड़ी नहीं थी | गाँव में भी दूसरे के खेत में काम कर के गुजारा करते थे | आर्थिक स्थिति से तंग आकर एक दिन बाहर जाने का मन बना लिए | फिर क्या ? भगवान केशरनाथ मंदिर में बटुक लिंग रूप में स्थापित शिवजी के दर्शन को निकल पड़े । यह लिंग सभी शिवलिंगों मे केसरिया की सबसे अमूल्य निधि माना जाता है। यह शिवलिंग 19690 में नहर की खुदाई के दौरान मिला था । विद्वानों का मानना है कि यह  विश्व का अनमोल शिवलिंग है जिसका जिक्र शिवपुराण में मिलता है । इस कारण स्थानीय लोगों में इस शिवलिंग के प्रति बड़ी श्रद्धा है | शिव के आशीर्वाद से लैस मटरू तिनसुकिया मेल में सवार हो लिए | बड़ी लाइन की सवारी न्यू बोंगाईगाँव में समाप्त हो गई | फिर छोटी लाइन की तिनसुकिया में सवार हो गए | सामान्य श्रेणी के डिब्बे में उनके जैसे अनेक यात्री यात्रा कर रहे थे | कुछ नए, कुछ पुराने | शिवसागर का नाम उनके जेहन में कंठ हो गया था, अतः शिवसागर वाले यात्रियों से उनकी जान-पहचान हो गई | अपने नए परिचितों के साथ शिमलगुड़ी स्टेशन पर अपना चरण रख ही दिया | बची-खुची रात स्टेशन पर सो कर गुजार दी, बिना किसी डर के | खोने के लिए था भी क्या ? नए दोस्तों पर यकीन करने के अतिरिक्त उनके पास कोई और चारा नहीं था, सो उनके साथ हो लिए एक नये मुकाम पर, एक नई सुबह की तलाश में |

मटरू थोड़ी देर के लिए रुके और फिर शुरू हो गए | मेरा बेटा टिंकू छह साल का है | अक्सर बीमार रहता है | पास के डॉक्टरों से काफी इलाज कराया, पर कोई लाभ नहीं हुआ | फिर किसी ने एक ओझा का नाम लिया | टिंकू की माँ बेटे को लेकर ओझा के पास गई | पता नहीं भैयाजी ये ओझा लोग चिलम-तम्बाकू क्यों गुड़गुड़ाते रहते हैं? और इन्हें शायद पानी से भी डर लगता है इसलिए नहाते भी कम ही हैं | मैंने मटरू की हाँ में हाँ मिलाई और अपनी तरफ से भी कुछ जोड़ दिया | “हाँ मटरू, इनके उस्ताद लोग इन्हें इसी तरह की ट्रेनिंग देते हैं और गंदगी से ही इनकी बुदबुदाने वाली मंत्र शक्ति ज्यादा प्रज्ज्वलित होती है”, मैंने धीरे से चुटकी ली | मन ही मन मैं सोच रहा था, मटरू भले ही पढ़ा-लिखा नहीं है तो क्या, हास्य-विनोद में कोई कमी नहीं है | “भैयाजी, इन सब बातों में यकीन करने का मन तो नहीं होता लेकिन परिवार का दबाव औए बच्चे के ठीक होने की उम्मीद के कारण सब करना पड़ रहा है”, मटरू फिर शुरू हो गए |

वार्तालाप एक नया मोड़ ले रहा था | मेरी भी उत्सुकता बढ़ रही थी | मटरू कुछ क्षण रुकने के बाद बोले, “शुरू-शुरू में पता नहीं कौन सा भभूत दिया, एक लगाने के लिए और एक खाने के लिए | टिंकू की फुर्ती के साथ-साथ उसकी माँ का यकीन भी बढ़ने लगा | अब तो पूरा परिवार ही ओझा की काबीलियत का कायल हो गया | कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा | एक दिन ओझा, जिसे गाँव में सोखा भी बोलते हैं, ने टिंकू की माँ से कहा, “बिटिया, परसों अमौसा की रात है, कुछ विशेष सामग्री का इंतजाम करना होगा | सामान के साथ-साथ एक होनहार खसी (बकरा) भी लगेगा | या तो तुम ही इंतजाम कर दो या उसकी कीमत दे दो, हम खुद जुगाड़ कर लेंगे |” बात कुछ और होती तो रामकली ( टिंकू की अम्मा ) शायद मना कर देती, पर यहाँ तो टिंकू के जीवन का सवाल था, सो मन गई | इधर-उधर से ले दे कर पैसों का इंतजाम करना पड़ा | बाकी सब इंतजाम ओझा और उसके गुर्गों ने कर दिया | लोगों की नज़रों से बच-बचाकर रामकली, टिंकू और रमेसर ( टिंकू के मामा ) रात में ग्यारह बजे ओझा द्वारा बताए गए एक सुनसान जगह पर पहुँच गए | ओझा और उसके कारीगर पहले से ही मौजूद थे | चुनरी, नारियल, फल, मालाफूल और न जाने क्या-क्या सामग्री वहाँ एक जलते अंगारों के पास में रखा था | इस दिव्य प्रज्ज्वलित अग्नि से लगभग बीस फुट की दूरी पर एक मेमने जैसा निरीह खसी एक ताजे गड़े खूंटे से बंधा था जिसके सामने कुछ हरी घास और एक कटोरे में चूनी-चोकर भी पड़ा था | आखिरकार आज तो उसी की रात थी !”

ओझा के सागिर्दों ने अपने करतब दिखाना प्रारंभ किया | वे सामग्री से कुछ सामान उठाते और टिंकू के सर से, कभी माथे से और कभी दिल से छूते और जलती चिता में छोड़ देते | पूरा वातावरण एक अजीब सी गंध से भर गया | फिर टिंकू को कुछ खिलाया गया और इसके बाद ही उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं | टिंकू जोर-जोर से अपना सर हिला कर नचाने लगा | कुछ देर यह सब चलता रहा | अब प्रमुख ओझा की बारी आई | यह साधारण सा दिखने वाला ओझा आज तो बड़ा भयानक लग रहा था | गांजे के नशे में धुत उसकी आँखे एक दम लाल अंगारे के सदृश लग रही थीं | ओझा ने अपनी कड़क आवाज़ में लगभग डपटते हुए टिंकू से कहा, “कौन है तूँ ? तुम्हारी मंशा क्या है ? इस बच्चे को क्यों जकड़ा है ? आज तो तुम्हारी खैर नहीं | अभी, इसी वक़्त तुम्हारी बलि चढ़ा दूंगा |” टिंकू की माँ और रमेसर दोनों डर के मारे थर –थर काँप रहे थे और मन ही मन हनुमान चालीसा भी पढ़ रहे थे | मारे डर के टिंकू भी घिघियाने लगा | क्या बोल रहा है, ओझा और उसके सागिर्दों के अलावा कोई नहीं समझ सकता था | “अच्छा तो तूँ है | बोल छोड़ता है या नहीं ? अभी तुमको तेस्तनाबूद कर देता हूँ | ठीक है, तूँ ऐसे नहीं मानेगा तो ये ले |” ओझा पास में रखी एक कुल्हाड़ी को हवा में नचाने लगा | यह सब देख कर टिंकू और डर गया और बोलने लगा, “नहीं, नहीं” | ओझा जोर से हँसा और कहने लगा, “ले आ अमानत ले आ” | तुरंत ही एक गुर्गे ने पास में बंधी खंसी को मालाफूल पहना कर, तिलक से सुसज्जित कर आग के सामने हाज़िर कर दिया |

अब क्या था, ओझा उठा | लपलपाती कुल्हाड़ी उठाई और हवा में लहराते हुए बकरे की गर्दन पर रख दी | एक पल को लगा कि बकरा तो गया, पर ऐसा हुआ नहीं | बकरा बच गया | विजयी मुद्रा में ओझा ने दोनों हाथ ऊपर उठाया और जय भूतनाथ, जय भूतनाथ का जयघोष करने लगा | गुर्गों ने टिंकू को हलके से थपथपाया और मुँह पर पानी के छीटें मारे | फिर ओझा ने टिंकू की पीठ थपथपाई और कहा, “टिंकू अब बिलकुल ठीक है” | रमेसर और रामकली ने भी राहत की सांस ली | आज रात का कार्यक्रम समाप्त हुआ पर रामकली का नहीं | श्रीमान ओझा ने रामकली से कहा, “बिटिया, यह बकरा तो बच गया, अब इसकी बलि भी नहीं दी जा सकती और न ही इसे किसी अन्य को बेचा जा सकता है | इसे तो मजबूरन मुझे ही रखना पड़ेगा और सुरक्षित भी रखना पड़ेगा कम से कम एक साल तक | तुम्हें टिंकू की परवरिश करनी पड़ेगी और मुझे इस बकरे की | इसका कम से कम एक हज़ार रुपया तो लगेगा अन्यथा कुछ भी अनिष्ट हो सकता है |

मरता क्या न करता | रामकली मान गई | मानती भी क्यों न ? टिंकू की जान अब बकरे की जान से जो जुड़ चुकी थी | बकरे की खैर में ही टिंकू की खैर थी | सवेरे ओझाजी के बकरों की जमात में एक और बकरा शामिल था | गाँव में मूंछों पर ताव देते ओझाजी हाँथ में बांस की एक सुटकुन थामे बकरों को बहोर रहे थे और दूर शिवसागर में मटरू मनी आर्डर भेजने की जद्दोजहद में |           

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