Thursday, 26 July 2018

नफ़रत की आग



नफ़रत की आग 

-राय साहब पाण्डेय 

दिल धड़कता है जब नफरत की सांसों से,
डाह की दाह बन जाती है चिनगारी,
चिनगारियां टकराती कब बन के अंगारे?
राखों के जखीरों से इल्म होता है |

चिंगारियों से प्यार के चूल्हे जलते हैं,
चिनगारिया होती हैं उद्यमों का उद्गम,
बेकाबू हो जाते हैं जब अंगारे निरंकुश,
तमक से इनके तो बस हैं घर जलते |

जब भड़कती है अह्मों की ज्वाला,
 गरल आहुतियां धधकाती हैं अंगारे,
कौन करे भेद, अर्थ क्या अनर्थ क्या?
मिटटी में मिलने को बस आतुर सारे |

कब मिटती है नफरत से नफरत ?
देखा कभी अंगारों से अंगारे बुझते?
शांति सिंचित जीवन, जीवंत रूप है,
धुल जाते सब जब मन हो निर्मल |

कुदरत में भी चिनगारी पैदा होती है,
बनती सबब दावानल के सृजन का,
हम तो इंसानियत तबाह करते हैं,
ख़ाक कर खुद के बनाए गुलशन का |

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