Thursday, 20 February 2020

अस्त-पस्त


अस्त-पस्त जिंदगी
-राय साहब पाण्डेय 

आँखों से ओझल हुए को अस्त कहते हम,
थक कर के हारे हुए को पस्त कहते हम |

रात-दिन के चक्कर चलाती धरती है ,
बेवजह  बदनाम करते  सूरज को हम ?

किसने कहा कि पस्त हो कर बैठ जाओ, 
सुस्ता कर थोड़ी देर फिर चलने से रोका कौन ?

अस्त-पस्त के भँवर में फसने को बोला कौन,
मन के  नाव पर सवार पतवार थामे कौन ?

कोई दिखे या खुद दिखो बस उलझनों का फेर,
इन  उलझनों को बेवजह सुलझाने को बोला कौन?

नियति की इस डोर से बंधने में लुत्फ़ है,
वरना  त्रिशंकु बन के यहाँ खुश भी रहता कौन?

ज़िद की गाँठ बाँध क्यों खुद को जकड़ लिया ?
खुशियों का दरिया छोड़ भला गम पकड़ता कौन ?




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