Thursday, 7 December 2017

इंतजार




इंतजार


सड़क के किनारे, कूड़े के ढेर पर बैठे फटेहाल ठिठुरते भिखारी को,
एक अदद कम्बल की गर्मी का,
और इठलाते हुए बंदरों के नसीब का,
बिन मांगे जिन्हें मिलते हैं खाने को स्वादिष्ट केले |

गंगा के किनारे उजाले में जलती हुई बत्तियों को बुझने का,
अँधेरे में जिन्हें गुमान था रौशनी बिखेरने का,
और मुक्तिदायिनी गंगा को मुक्ति का,
गंदे नालों और धोबियों द्वारा धोये गए मैले कपड़ों से |

किले के पिछवाड़े जमी हुई कड़क मिट्टी को धुलने का,
अपने ही साथ लाई हुई फिर से उसी बारिश के पानी का,
और किले की शानदार, जर्जर हुई दीवारों को मुक्ति का,
अनचाहे उगे हुए पीपल के पेड़ों से |  

शौच में मस्त गंगा के किनारे पर 
टकटकी लगाए हुए  नगरवासी को,
और कुछ सूखे कुछ ताजे पंक्तिबद्ध मानव मल-मूत्रों को,
स्वच्छ भारत के मसीहे का |

सबसे बेखबर, बेपरवाह औरों को कोसते हुए,
आलसियों को बी पी एल की सुविधा के जुगाड़ का |

-राय साहब पाण्डेय










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