Friday, 23 November 2018

बोल बम


बोल बम
प्राचीन काल से ही मनुष्य अपनी रोजी-रोटी के लिए अपने ठिकानों को बदलता रहा है | खुद को नए माहौल में ढालने तथा स्थानीय लोगों द्वारा स्वीकार किए जाने के बीच जद्दोजहद चलती रहती है | वह अपनी परम्पराओं और त्योहारों के साथ बेमेल समझौता भी करता है | समय के साथ कुछ सीखता है, कुछ सिखाता है और फिर वहीँ का हो जाता है | परंपरा और त्यौहार भी मनुष्यों के साथ चलायमान होते हैं |
सावन मास के आते ही शिव भक्तों में विशेष उत्साह संचरित हो जाता है | जगह-जगह शिव मंदिरों में लम्बी कतारें नजर आने लगती हैं | बम-बम भोले एवं हर-हर महादेव के जयघोष से शिवालय गुंजायमान हो जाते हैं | मटरू के लिए भी सावन का महीना किसी वार्षिक त्यौहार से कम नहीं है | शिव भगवान के लिए जलाभिषेक करना उनकी परंपरा का अटूट हिस्सा है | आज मटरू एक कावड़िया के रूप में पवित्र नदी के जल के साथ भगवान शिव का अभिषेक करने को उत्सुक हैं | परम्पराओं का निर्वहन करते हुए सुदूर असम के शिवसागर कसबे में भी कावड़ियों की चहल-पहल है |  कावड़ियों  के लिए कांवड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थ यात्रा है जिसमे शिव भक्त हिंदुओं के पवित्र तीर्थ स्थानों, यथा उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री तथा बिहार में सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल भर कर सैकड़ो किलोमीटर दूर स्थित शिवालयों में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और अपने आराध्य को अर्पित करते हैं | मेरठ में पुरा महादेव तथा औघढ़नाथ, वाराणसी में काशी विश्वनाथ एवं झारखण्ड में बैजनाथ और देवघर आदि कुछ प्रमुख शिव मंदिर हैं,  जहाँ लाखों कावड़ियों की भीड़ एकत्र होती है |

कांवड़ यात्रा में कावड़िया एक बांस के डंडे के दोनों सिरों से लटके हुए लगभग दो बराबर मटकों में भरे पवित्र जल को अपने एक कंधे पर या दोनों कंधों पर संभाल कर चलता है | कांवड़ शब्द मूलतः संस्कृत के कावाँरथी (कांवर ले कर चलने वाला) शब्द से ब्युत्पन्न हुआ है, जिसमे अनेक कावड़िया एक साथ जुलूस के रूप में यह तीर्थ यात्रा निष्पादित करते हैं | पुराणों के अनुसार इस यात्रा का सम्बन्ध क्षीरसागर मंथन से माना जाता है | जब मंथन से निकले विष की ऊष्मा से संपूर्ण विश्व जलने लगा तब महादेव ने विषपान कर विश्व को इसके प्रभाव से बचाया परंतु स्वयं इसकी नकारात्मक उर्जा से बच नहीं सके | विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप करने के उपरान्त कांवड़ में जल लाकर पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया | इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए | ऐसा माना जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई | दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान राम पहले कांवड़िया थे | कहते हैं कि श्री राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबाधाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था | कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित 'पुरा महादेव' का जलाभिषेक किया था | वह शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाए थे | इस कथा के अनुसार आज भी लोग गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पुरा महादेव का अभिषेक करते हैं | अब गढ़मुक्तेश्वर को ब्रजघाट के नाम से जाना जाने लगा है | एक अन्य किवदंती के अनुसार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत अपने दृष्टिहीन माता-पिता की गंगा जल से स्नान की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए की थी |


प्रारंभ में यह यात्रा काफी छोटे स्तरों पर आयोजित होती थी और मुख्यतः भारत के उत्तरी भूभागों में ही सम्पादित होती थी | जिस प्रकार छठ का आयोजन बिहार एवं पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों तक ही सीमित था और पलायन के चलते अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रचार-प्रसार खूब  बढ़ा तथा बाद में राजनीतिक रूप भी लेने लगा, उसी तरह कांवड़ यात्रा भी देश के अन्य भागों में भी खूब प्रचारित हो रहा है | अंग्रेज सैलानियों के अनुसार उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कांवड़ तीर्थ यात्री उत्तरी भारत के मैदानी हिस्सों में देखे जाते थे | शुरुआत में वृद्धों एवं कुछ साधू-महात्माओं द्वारा ही इस यात्रा का विवरण मिलता है, परंतु पिछली सदी के आठवें दशक से तीर्थ यात्रियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और इस यात्रा पर भी राजनीतिज्ञों की नज़र पड़ चुकी है | अब यह यात्रा उत्तर के कुछ मैदानी भागों तक ही सीमित नहीं है बल्कि छतीसगढ़, हरि- याणा, दिल्ली, पंजाब राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं असम प्रदेश तक फ़ैल चुकी है | 

कावड़ियों की मदद के लिए अनेक गैर-सरकारी संगठन अस्तित्व में आ गए हैं जो इन यात्रियों को मुफ्त सेवा प्रदान करते हैं तथा रास्ते में इनके लिए मुफ्त खान-पान, शयन-विश्राम और चिकित्सा संबंधी सेवाएं मुहैया करवाते हैं | ऐसा नज़ारा उत्तरी गुजरात में अम्बाजी के दर्शन हेतु यात्रियों के लिए आम हुआ करता है जिसमे तीर्थ यात्री नंगे पांव सैकड़ों किलोमीटर पैदल यात्रा करते हैं | कावड़ियों में अधिकतर पुरुष होते है पर अब महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है |

आज सोमवार है | मटरू आज के दिन हमेशा केसरिया से देवघर अपनी मण्डली के साथ जाते थे | केसरिया निवासी केसरिया बाना में सुलतानगंज से पवित्र गंगाजल भगवन बैजनाथ को चढाते थे | आज वे अत्यंत भावुक हैं | अपने साथियों के साथ पुरानी यादें ताज़ा कर रहे हैं | दिखू का जल कांवड़ में भर कर शिव मंदिर में चढ़ाने के लिए अपने अपने कांवड़ संभालते आगे बढ़ रहे थे और शिव की महिमा में उद्घोष कर रहे थे:
बोल बम का नारा है, बाबा एक सहारा है |
मटरू सबसे पहले बोलते: बोल बम का नारा है | इसके पीछे सभी बोलते :बाबा एक सहारा है  |

जो भी हो, मटरू जहाँ भी हैं पूरी श्रद्धा से भोले नाथ का अभिषेक तो कर ही रहे हैं | समय के साथ कावड़ियों की परंपरा में भी बदलाव दिखाई दे रहा है | जहाँ पहले ये कावड़िया भोला यानी निष्कपट, सीधा-सादा और दुनियादारी से बेखबर भक्ति के वशीभूत हो कर तीर्थ यात्रा संपन्न करते थे वहीँ आज इन कावड़ियों के मध्य शरारती तत्वों और पाखंडियों की भरमार हो गई है | आज कावड़िया ज्यादातर ऐसे युवा हैं जो किसी काम-काज में नहीं लग पाए हैं और आर्थिक विकास के अवसर में पीछे रह गए हैं | इनके लिए इस यात्रा का मकसद साफ़ नहीं है बस समाज में दिखावे के लिए भागीदार हो जाते हैं | आए दिन गाड़ियों में और सड़कों पर इनका उपद्रव इसी मानसिकता को दर्शाता है |




No comments:

Post a Comment