चालबाज़
मदारी
-डॉ राय साहब पाण्डेय
हर धंधे की अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है | अगर पुजारी
माथे पर कोई गोल, या एड़ा- तिरछा टीका न
लगाए तो बहुत से लोग उनको पंडित जी ही नहीं कहेंगे | इसी तरह अगर कोई साधू बनना
चाहे तो लाल या गेरुआ रंग का वस्त्र और हाथ में चिमटा ही शोभायमान होगा | और अगर जादूगर
चालाक ही न हो तो वह जादूगर ही क्या?
टिंकू अब बड़ा हो गया है | अब उसका अपना असली नाम भी है | गाँव
के स्कूल में पढने भी जाता है | अपनी दादी की मेहरबानी से थोड़ी बहुत दुनियादारी भी
सीखने लगा है | यह भी जान गया है कि आँगन की मुंडेर पर बैठ कर अगर कौवा काँव-काँव
करे तो उसके मामा आने वाले हैं|
गर्मी की चिलचिलाती धूप में बच्चों को घर से निकलने की
मनाही है | लेकिन बच्चों को बाहर निकलने से कौन रोक सकता है? बच्चे अपनी माओं और
दादियों के साथ सोने का नाटक कर रहे हैं या यूँ कहें कि उनका सोने का इंतजार कर
रहे हैं | जैसे ही दादी की नाक से घुर्र-घुर्र की आवाज आनी शुरू हुई कि टिंकू
एक-दो तीन | आम के बगीचे में उसकी टेन के बच्चे अक्सर जमा हो जाते | तरह-तरह के
खेलों को सीखने की यही नर्सरी है यहाँ | पर आज कुछ अलग है |
गाँव की गर्मियों में यदि ढोलक की आवाज सुनाई दे तो समझ
लेना चाहिए कि आल्हा गाने वाले अंकल लोग होंगे और नगाड़े की तड़तड़ाहट सुनाई दे तो
नाच मण्डली | पर आज की आवाज़ इन दोनों आवाज़ों से अलहदा है | दादी ने भी सुनी | “अरे!
यह तो डमरू बज रहा है | लगता है मदारी आया है |” दादी को भी मदारी का खेल देखने
में मजा आता था | हमेशा एक एक ही खेल बार-बार देखने के बाद भी लोग बोर नहीं होते |
वही नाग बाबा, वही जमूरा | गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान सभी एकत्र होने लगे | गाँव
की कुछ महिलायें भी आ गईं | मदारियों को पता है कि उन्हें अपना ताम-झाम कहाँ रखना
है | अक्सर यह जगह गाँव के बीचो-बीच हुआ करती है और किसी बड़े घर के बड़े द्वार के
सामने जहाँ नीम के एक-दो विशाल पेड़ हों, अन्यथा धूप में बैठ कर कौन देखेगा मदारी
को और मदारी के तमाशे को ! मदारी ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई | काफी पब्लिक जमा हो
गयी है | मदारी चालू हुआ, “मेहरबान-कद्रदान” दाहिने हाथ से डमरू नचाते हुए डम-डम
की आवाज के बीच ‘पेट नहीं तो भेंट नहीं’ के साथ सामने जमीन पर बैठे बच्चों और थोड़ा
दूर हट कर नाद पर या चारपाई पर बैठे बुजुर्गों से तालियों की गुजारिश की | बुजुर्ग
लोग पके हुए लोग होते हैं, उन पर इस अपील का कोई असर नहीं हुआ | पर बच्चों का जोश
तो सातवें आसमान पर है | ऐसे भी वे खेल देखने को उतावले हो रहे थे | बच्चों ने तालियों
की गड़गड़ाहट से माहौल में रौनक डाल दी | मदारी और जमूरा दोनों खुश हुए और लोगों को
उनके पीले दांतों के दर्शन भी हो गए | सुस्ती की मस्ती में अलसाए एक कमोरी
(हंडिया) में रखे बिना दांत और कान के नाग बाबा के अंदर भी सुग्मुगाहट हुई |
‘बाबा’ को भी आभास हो गया कि अब उनके दर्शन देने का वक़्त आ गया है |
मदारी ने चीथड़े से बंधी हांडी के मुँह की रस्सी को ढीला किया
| नाग देवता की हंडिया को बाएं हाथ से
थपथपाते हुए दाहिने हाथ से अपनी पुंगी (बीन) संभाली | बाबा का मरियल थूथुन बाहर
निकला | मदारी की बीन एक्शन में आई | बजाना और हिलना दोनों एक साथ प्रारंभ | मदारी
के दोनों हाथ अब उसकी पुंगी पर | थोड़ी देर में ही मदारी भी अपनी लय में था | बीन
बजाते-बजाते हिंदी फिल्म की एक प्रमुख धुन “मन डोले मेरा तन डोले” पर आ गया | जनता
को तो मधुर-सुरीला धुन सुनकर आनन्द आया पर नाग बाबा को इस धुन से क्या मतलब | वे
तो मदारी के हाव-भाव में खो गए | मदारी तो फनकार निकला लेकिन देवता को फन खड़ा करने
में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी | बीन की जादूगरी और मदारी की कलाकारी ने देवता को अपनी
रीढ़ पर ला खड़ा किया | इस बार तालियों का शोर इस बूढ़े नाग के लिए | मदारी ने अपना
करतब दिखाना शुरू किया | कभी वह इस भुजंग को अपने गले में लपेट कर नीलकंठ बन जाता
तो कभी हाथों की अंजली में कुंडली मार कर बैठे सर्प का दर्शन कराता | बड़े लोग तो
यह सब अनेक बार देख चुके थे परंतु वे बच्चे जो पहली बार यह तमाशा देख रहे थे, अपने
साथ आये बुजुर्गों की तरफ मुँह फेर कर दुबकने लगे | दादी ने भी टिंकू को ढाढ़स
बंधाया और बोली, “अरे डर क्यों रहे हो? कुछ नहीं होगा | यह तो खेल है, सचमुच में
ऐसा थोड़े ही होता है |” नाग का एक करतब अभी बाकी था | उसे मदारी की जीभ अपनी जीभ
से चाटनी थी | मदारी ने भगवान से अपने प्राणों की रक्षा हेतु दुआ मांगी और लोगों
से भी अपने जान की रक्षा के लिए प्रार्थना करने की गुहार लगाई | डमरू की डम-डम, बीन
की धुन और तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य उसने नाग का फन ही अपने मुँह में डाल लिया |
कुछ बड़े कठ-करेजी लोग ही इस पहले ‘एक्ट’ के तीसरे ‘सीन’ को देखने का साहस दिखा सके
| भुजंग जी को जमीन नसीब हुई | थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि जमूरे ने पकड़ कर फिर हंडिया
के हवाले कर दिया |
मदारी का दूसरा एक्ट प्रारंभ हुआ | जमूरा पहले से तैयार था
| दूसरे एक्ट में अक्सर एक ही सीन हुआ करती थी लेकिन यह शहराती मदारी एक और सीन
जोड़ने वाला था | एक बड़े से जूट के थैले में मासूम से दिखने वाला यह जमूरा कैद हो
गया | मदारी और जमूरे का वाकयुद्ध शुरू हुआ |
मदारी: जमूरे?
जमूरा: जी, उस्ताद |
मदारी: क्या दिखाएगा?
जमूरा: करतब |
मदारी: कैसा करतब, बे |
जमूरा: वही, जो आपने सिखाया है, झूठ-मूठ का मरना |
मदारी धीरे से बोला, अबे क्या कह रहा है जनता सुन रही है |
जमूरा: पापी पेट का सवाल है, पेट नहीं तो भेंट नहीं |
मदारी: यह तो मैंने नहीं सिखाया |
जमूरा खिलखिला कर हँसा | उस्ताद यह तो उसी दिन जान गया था
जब रोज-रोज झूठ-मूठ का मरना पड़ता है |
मदारी: जमूरे! आज सचमुच मरेगा तूँ |
छोटे बच्चे फिर एक बार दुबकने लगे | मदारी ने धमकाते हुए
कहा, “बहुत बोल लिया, अब अपने भगवान्, खुदा और ईशा को याद कर ले |”
पर शहरी मदारी ने इस एक्ट में एक ट्विस्ट लाते हुए पूछा, “बहुत
पटर-पटर बोल रहा है तूँ क्या इन मेहरबानों का जवाब देगा?
जमूरा: हाँ देगा |
मदारी ने जब वहाँ बैठे लोगों से सवाल पूछने के लिए कहा तो
ढेर सारे लोगों ने हाँथ उठा दिए | जमूरा ट्रेंड था | मदारी हाथ उठाने वालों पर एक
सरसरी निगाह डाली | इसमें अधिकतर युवा थे | कुछ मजाकिया किस्म के भी थे | मदारी ने
एक युवक को सबसे पहले मौका दिया और उससे पांच तक गिनती गिनवाई |
एक-दो-तीन-चार-पांच, लगे न आपको आंच | जमूरा समझ गया | युवक ने अपने दोस्तों की
तरफ देखा फिर मुस्कुराया और पूछा, “मेरी शादी कब होगी?” जमूरे के लिए यह बहुत आसान
सवाल था | उसने झट उत्तर भी दे दिया. “शादी का जोग नहीं लिखा है |” युवक झेंप गया
और सारी पब्लिक के बीच एक जोरदार ठहाका गूंजने लगा | मदारी ने फिर एक मासूम से दिखने
वाले बच्चे के उठे हाँथ की तरफ रुख किया |
मदारी : इस बच्चे का भविष्य बताएगा |
जमूरा : हाँ बताऊंगा ( गाने की धुन में बोला ) |
मदारी ने बच्चे को जमूरे के कान में अपना सवाल पूछने के लिए
कहा | बच्चे जमूरे के कान के पास अपना सवाल दाग दिया जो और कोई नहीं सुन सका | लोग
बोलते हैं मेरी माँ भाग गई है, कब आएगी? आख़िरकार जमूरा भी तो बच्चा ही था | उसे इस
तरह के सवाल का कतई अनुभव नहीं था | उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था वह क्या जवाब दे |
देर होते देख मदारी ने कमान संभाली | “जमूरा कितना सोचेगा, जल्दी उत्तर बता” |
बच्चे ने अबकी बार अपना कान जमूरे के मुँह की तरफ टिका दिया | जमूरा बोला, “तुम्हारे
पास पैसे हैं तो मेरी मुट्ठी में रख दो, मुझे भूख लगी है | मेरी भी माँ नहीं है |
बच्चे ने अपने जेब से एक अठन्नी निकाली और जमूरे की हथेली पर रख दिया | जमूरा बड़ी
ही सावधानी से उसे मुट्ठी में बंद कर अपनी पीठ के नीचे छुपा लिया और बच्चे से बोला
| तुम्हारी माँ कभी नहीं आएगी” |
बच्चा जोर-जोर से रोते हुए कहने लगा, “मेरी माँ नहीं आएगी |
इसने मेरा पैसा भी ले लिया” | मदारी और जमूरे दोनों के लिए यह एक अप्रत्याशित घटना
थी | लोगों को पहले तो कुछ समझ नहीं आया पर थोड़ी ही देर में ही लोग सब समझ गए |
उत्तेजित भीड़ उग्र होने लगी | कुछ नवयुवक मदारी की तरफ बढ़े और उसकी पुंगी दूर फेंक
दी | जमूरा उठ खड़ा हुआ और दोनों दूर भागने लगे | लोग भी थोड़ी देर तक उसके पीछे
भागे लेकिन दोपहर की कड़ी धूप में कहाँ तक पीछा करते? जमूरा और मदारी दोनों दूर बगीचे में एक पेड़ के नीचे बैठ गए |
मदारी का बड़ा चीथड़ा झोला, उसकी पुंगी और दूसरे गाँव में
मिले अनाज का थैला यहीं छूट गया | कुछ लोगों ने उसके चीथड़े को टटोलना शुरू किया |
अचानक नाग बाबा की बंद हंडिया पर नजर पड़ी | लोग पीछे हट गए | “अब इनका क्या करना
है”, सामने से आवाज आई | अब तक बिना दांत वाले बड़े-बूढ़े शांत बैठे थे | अब उनका
रोल आ गया | इन लोगों ने समझा-बुझा कर भीड़ के गुस्से को शांत किया और दो समझदार
लोगों को मदारी को वापस लाने के लिए भेजा | मदारी को यकीन था कि उसका पालतू सांप
अवश्य मिल जाएगा | शायद इसी यकीन के कारण वह बगीचे में रुका रहा | युवकों ने दूर
से ही मदारी को हाँथ से वापस आने के लिए संकेत दिया | मदारी और जमूरा दोनों ही
मुँह लटकाए वापस आ गए |
मदारी अपना थैला संभालने लगा | नाग बाबा को थैले के हवाले
कर रहा था तभी पीछे से किसी ने कहा, “अबे मदारी, असली खेल तो दिखाया ही नहीं,
जमूरे का क़त्ल नहीं करोगे?” मदारी फिर अपनी लय में लौट आया | जमूरे को पता है आगे
क्या करना है | वह उसी जूट के लम्बे थैले के अन्दर पुनः घुस गया | उसे पता है
कि अभी-अभी असकी जान बची है और अभी-अभी फिर मरना है पर इस बार झूठ-मूठ का | मदारी
ने अपनी झोली से एक लपलपाती कटार निकाली | जमूरे के बंद थैले के ऊपर हाँथ नचाते
हुए तथा अगड़म-बगड़म बुदबुदाते हुए कटार जमूरे के पेट में खोंस दी | पास में बैठे
बच्चे अपनी आँखे नीचे किये हुए साँस रोक कर बैठ गए | मदारी का हाँथ लहू-लुहान हो
गया | एक क्षण को लगा सचमुच जमूरा गया | मदारी अपना सर पकड़ कर ऐसे बैठ गया जैसे
उसे अपने इस कृत्य का भयंकर अपराध बोध हो रहा हो | कुछ युवा उत्साही सब कुछ भूल कर
तालियों की बौछार भी कर दी | शहरी मदारी के मन में संतोष जागा | उसे लगा कि अब कुछ
कमाई जरूर हो जाएगी | डमरू की डुग-डुगी फिर तेज हो गईं | “मेहरबान-कद्रदान, पेट
नहीं तो भेट नहीं” मदारी फिर से दुहराने लगा | लोग भी सब कुछ भूल गए | जिससे जो बन
पड़ा अनाज, चवन्नी-अठन्नी सबने दिया | अंत में गुड़ के साथ पानी भी पीने को मिला |
जमूरे ने नाग वाली और मदारी ने अनाज वाली थैलियाँ अपने-अपने
कन्धों पर संभाल लिया | पुंगी मदारी के हाँथ में | एक बार फिर वही धुन बजाते मदारी और जमूरे अपने घर की तरफ चल दिए
| अब उनके पीछे कोई नहीं दौड़ रहा था | कुत्ते भी नहीं | क्षितिज पर सामने गोल-लाल
सूरज अभी भी अपनी लालिमा विखेर रहा था | वातावरण चारों तरफ भूंसे की बारीक गर्द से
धुंधला हो चला था | मदारी के पाँव तेज हो गए | घर पहुँच कर भोजन भी तो बनाना है | यहाँ
कौन सा होटल रखा है? जमूरा शांत और दुखी दिख रहा था | मदारी ने जमूरे से कहा, “इस
धंधे में ऐसा होता ही रहता है | तूँ परेशान मत हो |” जमूरे ने अपना मुँह खोला, “बापू,
जमूरों की माएं क्यों भाग जाती हैं?” मदारी सन्न था | थोड़ी देर बाद मदारी ने अपना
मुँह खोला और कहा “ताकि दूसरे जमूरों को माँ मिल जाय” |

आपके इस लेख ने गहरा प्रभाव छोड़ा। अंकल कहानी सुनाने के आपके अंदाज़ में अब एक उत्कृष्ट साहित्य नज़र आने लगा है। लिखते रहिये। अगली कहानी के इंतज़ार में
ReplyDeleteअंकुर