Thursday, 23 May 2019

सूखी ओस




सूखी ओस

डॉ राय साहब पाण्डेय 

आज आसमान में कुछ बादल देखे,
सोचा कुछ तो बारिश होगी,
संभावनाओं की आस जगी,
पिघलेंगे ही सही, अभी नहीं तो कल |

आज कल हुआ और कल फिर आज,
बादल कब के हो गए तितर-वितर,
बादलों की नमी सूख गयी,
उम्मीदों की आस भी टूट गयी |

बारिश ना हुई, ना सही
फिर से एक आस जगी,
आखिर नमी तो नमी है
लौटेगी ही, आज नहीं तो कल |

फिर से एक आशा का संचार जागा,
एक नए कल के बादलों की छाँव का
हाथों को फैलाया, थोड़ा कमर को और उठाया,
पर हथेलियों की कटोरी में कुछ नहीं आया |

आसमान में तो मिली नहीं,
चलो जमीन में तलाश करते हैं,
अबकी बार हाथों को ऊपर नहीं नीचे फैलाते हैं,
पर यहाँ भी उम्मीद नाउम्मीद हुई |

जमीन की मिटटी को मुट्ठी में उठाया,
कंकरों को साफ़ किया, थोड़ा भुर्भुराया,
यहाँ भी उम्मीद धूल हो गयी,
नमी का तो नाम नहीं, ओस भी सूख गयी |

No comments:

Post a Comment