प्रार्थना
बात करके तो अच्छा
लगता है
पर सुन कर बेहद दुःख
होता है
वेदना होती है, अहसास
होता है
पर मजबूरी की कसक
होती है |
मजबूरी जो दिलासा न दिला
सके
सांत्वना के दो शब्द
भी कैसे बोले
गुजरे दिनों की तस्वीर
कैसे देखे
मन में उठी हलचल को
कैसे रोके |
इस निर्मम भविष्य को
क्या कहें
विवश हैं कि कैसे
रोकें कैसे टोकें
तन का जख्म मन को
झकझोरे
तो उसे क्या कहें उसे
कैसे देखें |
चुपचाप सहना भी
मुश्किल है
यह क्या किसी सेवा से
कम है?
जब दिल की बात मन में
दबे
तो बिन कहे भी गूँज
होती है |
बेबस तो है पर इतना
भी नहीं
कि विश्वास है प्रार्थना
की डोर
उस तक पहुँचेगी ही
सीधे बेरोक
जहाँ प्रभु हाथों में
लगाम की छोर |
मन के भाव जो रुक न सके: डॉ भारती अग्रवाल की बीमारी के विषय में जानने के पश्चात्
मन के भाव जो रुक न सके: डॉ भारती अग्रवाल की बीमारी के विषय में जानने के पश्चात्
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