आज के बछड़ों की व्यथा
एक सूखे पोखर की सीढ़ियों पर बैठ,
मन व्यग्र हो चला,
क्योंकि यह इंसानों का नहीं,
गौ-वंश का है मामला |
कभी मेरा भी होता था दोनों जून खरहरा,
होती थी मान-मनौव्वल मैं भी था छरहरा |
पैदा होते ही सभी नाज करते थे मुझ पर,
बूढ़े, बच्चे सभी करते थे प्यार
न्योछावर ||
एक बच्ची तो मेरी आँखों में ही झाँका करती
थी,
वह मुझे नहीं एक हिरनी का प्रतिरूप
देखती थी|
बच्चे अकसर साथ दूध-रोटी का नाश्ता
करते थे,
मेरा रँगीला पगहा पकड़ कर भी नींद ले
लेते थे ||
क्योंकि तब मैं बछड़े से बैल बना करता था,
घर-गृहस्थी का पॉवर-हाउस हुआ करता था,
मेरे वगैर मालिक की भी अवकात क्या थी?
यदि मैं बीमार तो सारा घर बीमार होता था |
खेतों की जुताई हो या फसलों की बुआई,
गेहूँ की सिंचाई हो या गन्ने की पेराई
,
रबी की मड़ाई हो या धान की रोपाई,
घर की शान मैं, शक्ति का निशान था |
पैदा होते ही अब प्यार, मान ख़त्म हुआ,
दुत्कार, और तिरस्कारों का बोझ बढ़
गया,
माँ-बहनों की तो अब भी खासी इज्जत है,
मेरा क्या कसूर? जो मेरा अवमान हुआ |
इंसान अपने जुड़वों को बेपनाह प्यार
देता है,
हम अगर जुड़वे हुए तो लांछन ही मिलता
है,
मेरी माँ को तो मत कोस ऐ सुसभ्य मानव,
समझदार हो, तो शर्म करो, मत बनो दानव |
जब तक माँ के पास गोरस है तुम्हें
देने के लिए,
मैं भी उपयोगी हूँ बस उतने ही दिन
तुम्हारे लिए,
फिर यह रिश्ता ख़त्म, तुम्हारे किसी
काम के नहीं,
पुरखों ने जो गुलामी की उसका भी लिहाज
नहीं |
तुम यत्न करते हो मुझसे छुटकारा पाने
के लिए,
पैसे भी खर्च करते हो नज़रों से दूर
जाने के लिए,
तुम्हारा दिल जीत सकूँ इस आस में, मैं
निर्लज्ज,
फिर भाग आता हूँ तुम्हारा संरक्षण
पाने के लिए|
अपनी जन्मभूमि का और तुम्हारे सामीप्य
का,
सोचता हूँ यह विछोह क्यों? कैसे सह
पाऊंगा?
अपने कुटिल वारों की जिल्लत से निजात
दे दो,
यदि नहीं रख सकते तो कसाई को ही बेंच
दो |
पहले बात और थी, शायद जमाना और था,
कुछ ही सही, हमारे भाई सांड़ बन जाते
थे,
उनकी पीठ पर दाग था, गाँव में शोहरत
थी,
मान था, क्योंकि माँग, पूर्ति के हिसाब
से थी |
पहले कुत्तों को दुर-दुराते थे, अब
हमें दुत्कार मिलती है,
कस्बों में छुट्टे घूमते-फिरते थे, मौज-मस्ती करते थे,
अब तो गाँव, खेत और खलिहानों में
सरेआम मिलते हैं,
लेकिन पहले केवल एक बार, आज बार-बार
मरते हैं |
हे बुद्धिमान मानव ऐसा कुछ क्यों नहीं
करते?
जैसा पहले खुद ही अपने वंश के साथ
करते थे,
अपनी औलाद को अपनी झूठी इज्जत के लिए,
बेटियों को माँ के गर्भ में ही
कुर्बान करते थे |
यह हीरा-मोती जैसे दो बैलों के प्यार
की नहीं,
आज के घूमते-फिरते छुट्टे सांड़ो का
किस्सा है,
समय की हकीकत है, हमने तो केवल सुनाई
है,
समस्या का हल हो, इसलिए ही गुहार लगाई
है |
-राय साहब