रिश्तों की पगडंडियाँ
यूँ ही चलते-चलते अचानक
सोचने लगा,
आखिर ये पगडंडियाँ
टेढ़ी-मेढ़ी क्यों हैं?
सोचा, फिर सोचा पर
समझ नहीं आया
फिर भी सोचता रहा, फिर
क्या ? वही हुआ
आखिर सोच को भी तरस
आ ही गयी |
सोच ने कहा- पूछ ले
इस पगडंडी से ही
आखिर क्यों ऐसी होती
हैं ये?
पगडंडी ने हलके से, मुसकराते
हुए चुटकी ली
बोली- मेरी क्या बिसात,
बनाने-मिटाने से मेरा क्या वास्ता?
यह तो तुम्हारी
विरासत है, जैसा बनाओगे वैसा ही पाओगे |
पगडंडी यहीं नहीं
रुकी आगे बोली
हमारा क्या ? हम तो
ऐसे ही हैं
पर चाल तो तुम्हें
चलनी है सीधी या टेढ़ी ?
तुम मनुष्य हो, विवेकी
हो, चाल चलना तुम्हारे बस में है
सीधा चलोगे तो खुशहाल
रिश्ते ही बनाओगे |
रिश्ते तो मेरे भी
हैं- तुमसे, इन किनारों के बासिंदों से,
इन चहचहाते परिंदों
से, इनके आश्रय दाताओं से
पर इनमें से तो किसी
ने कभी नहीं पूछा मेरी शक्ल के बारे में?
फिर भी मैं कहे देता
हूँ, नजरिया बदलो
रास्तों का क्या? रिश्ते
बनाओ भी, निभाओ भी |
चलते तो थे तुम्हारे
पुरखे भी इन्हीं पगडंडियों पर,
पर उनके आने का मुझे
इंतज़ार होता था,
मैं सब्र करता था, बेसब्री
से मेरी बारी का
आखिर उनको जो अपना
रिश्ता निभाना होता था
आखिर उनको जो अपना
रिश्ता निभाना होता था|
रिश्तों का कोई ओर नहीं,
कोई छोर नहीं, न ही कोई बंधन
कागा हो या कोयल? क्या
फर्क पड़ता है?
अपने हो या कोई गैर,
बात तो अहमियत की है
रिश्तों में एहसास का
होना ही उसका मूल है,
मूल्य तो रिश्तों का
है रास्तों का क्या- पगडंडी चाहे सीधी हो या टेढ़ी |
-राय साहब
-राय साहब
आप ब्लॉग की दुनिया मे प्रवेश कर गए जान कर बहुत खुशी हुई। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं! आपकेbhu alumni meet के दौरान विभिन्न मुद्दों पर आपसे बात करके बड़ी ठंडक मिली। बहती हवा के झोंको में उड़ता परिंदा सा है मेरा मन,और आप एक बर्गद कि छाया। IIT गेस्ट हाउस में थोड़े समय की ही आपका सानिध्य लाभकारी रहा। आपसे निवेदन है कि bhu alumni meet का जो समय अपने whatsapo पे बांधा था उसे भी यहां प्रस्तुत जरके जीवंतता के साथ सब मित्रो की nostalgia को लपेटते हुए। आपका भाषा कौशल काबिले तारीफ है।व्यक्तित्व भी। आपके द्वारा दिये उपदेश सीधे मेरे दिल मे उत्तर जाते रहे उस छोटे संग में गेस्ट हाउस के। आपपनी रचनाओं से प्रियजनों को भावनात्मक ऊर्जा और स्नेह बरसाते रहें मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।लेखन मैं} भी करता रहा मगर उसे ब्लॉग डालने का कोई मूड नही बन रहा। बहरहाल💐💐👌👌💐 सुभाष त्रिपाठी
ReplyDeleteTyping त्रुटियां-1-
ReplyDelete-bhu alumni meet का जो (समय) = समा आपने बांधा...
2- whatsapp पे बांधा था उसे भी यहां प्रस्तुत (जरके) = करके)
3- (आपपनी) अपनी रचनाओं से प्रियजनों को ....
Practical and value oriented poem... Very well written :)
ReplyDelete