साइकिल घड़ी अंगूठी
कलम
-राय साहब पांडेय
लाजो मान गई है | परिवार
में चहल-पहल थी | लोग एक-दूसरे से कानाफूसी कर
रहे थे चलो, अंत भला तो सब भला | लड़के बाज़ार दौड़ाए जा रहे थे | हर साइकिल पर दो
सवारी कम से कम आज के दिन तो नहीं जा सकती थी क्योंकि साइकिल के कैरियर पर तो सामान
ही लदने वाला है | किसी ने सुझाया आज के दिन भी भला कोई साइकिल देने से मना करेगा
क्या? अगल-बगल से मांग लो | साइकिल का इंतजाम तो जैसे-तैसे हो गया, पर कुछ एक
साइकिलों में पीछे के पहियों में हवा ही नहीं
थी | पर नई टेन के जोशीले नवयुवकों में इसकी परवाह कहाँ होती है? पंचम ने फ़ौरन सयानों
जैसा जवाब देते हुए कहा, “अरे भइया, आप एका
चिंता काहें कर रहे हैं, बस आगे तिरमोहानी पर हवा भरवा लेंगे |” भइया जी भी अपना फर्ज
निभाते हुए बोले, “अरे पता नहीं, पंचर भी हो सकता है, बनवा लेना | और हाँ, गर्मी
बहुत है, रास्ते में पानी-ओनी पीते रहना | सामान बाँधने के लिए पुराना ट्यूब भी रख
लेना |”
चार नवजवानों ने
अगल-बगल के बाजारों के लिए कमर कस ली | उन दिनों छोटी-मोटी चीजों के लिए भी बाज़ार
पर ही निर्भर रहना पड़ता था | खाने-पीने की चीजों
से लेकर बर-बर्तन, कपड़ा-लत्ता या गहना-गुरिया सभी के लिए बाज़ार ही जाना पड़ता
था | तरकारी-भांजी, मर-मसाला और तमाम अगड़म-बगड़म सामान तो इन बच्चों को सुपुर्द कर
सकते हैं पर शादी-ब्याह में दुल्हन के कपड़े, जेवरात और लड़के तथा बारातियों के लिए
विदाई का सामान तो खुद ही देख-सुन कर, मोल-भाव करके ही लेना पड़ेगा | “अब ज्यादा
समय नहीं है सोमू, एक-दो लोगों को अपने साथ लो और तुम भी निकलो | और हाँ, जैसा
मैंने बताया था उसी के मुताबिक एक लिस्ट तैयार कर के अपने पास रख लेना”, पड़ोस के शिव
शंकर चाचा ने हिदायत देते हुए कहा | आख़िरकार, चाचा ही अपने रिश्ते में यह शादी
करवा रहे थे | इस लिहाज से वे ही तो अगुवा हुए |
आज की बात कुछ और है |
सामाजिक रीति-रिवाजों में बहुत बदलाव आ चुका है | पर आज से तीस-चालीस साल पहले
शादी के लिए इश्तहार तो बिरले लोग ही देते थे | अगुवा और पंडित के बिना शादी की
कल्पना करना भी मुश्किल था | दरअसल, अगुवा लोग लड़की और लड़के पक्ष के लिए न केवल एक
सेतु का कार्य करते थे वरन रिश्ते के लिए जरूरी आपसी विश्वास की भी गारंटी होते थे
|
दुल्हन का नाम
लाजवंती था | उसकी माँ प्यार से उसे लाजो बुलाती थी | जब माँ ही लाजो कहे तो भला
और लोगों को इस नाम से क्या परहेज हो सकता था | वह पूरे मोहल्ले की लाजो थी | नैन-नक्श
तो ठीक था पर कद काठी सामान्य से कम | सांवली थी अपने माँ जैसे | उसका भाई सोम
प्रकाश लम्बा छरहरा और गेहुँए रंग का तकरीबन पैंतीस वर्ष का समझदार युवक था | पढ़ने-लिखने
में शुरू से होशियार था | सरकार की तरफ से वजीफ़ा भी मिलता था | नजदीकी स्कूल में
पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए बड़े शहर जाना पड़ा | सोम प्रकाश के पिता
की मोहल्ले में ही किराने की दुकान थी | ठीक-ठाक चलती भी थी | सोम प्रकाश की पढ़ाई
का खर्च और परिवार का भरण-पोषण अच्छे से हो जाता था |
कहते हैं न तकदीर कब
और कैसे करवट बदले कुछ बोल नहीं सकते | सब कुछ ठीक चल रहा था तभी सोम के पिता एक
सड़क दुर्घटना में बुरी तरह जख्मी हो गए | लाद-फान कर अस्पताल पहुँचाया गया | दस
दिन अस्पताल में रहे पर होश नहीं आया और बेहोशी की हालत में ही दम तोड़ दिया |
परिवार पर मानो विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा | सोम उस समय बीस का था जब घर की सारी जिम्मेदारी
उस पर आ पड़ी | पिता की जमा पूजी पहले अस्पताल का बिल चुकाने में और फिर उसकी पढ़ाई
लिखाई में ख़त्म हो गई | आज के जमाने में तो पढ़ाई के लिए लोन मिल जाता है, लेकिन
पहले यह सब सुविधाएं कहाँ थी? लोन के लिए कौन गारंटी देता? गिरवी रख कर लोन लेना
भी बड़े जोखिम का काम था चाहे वह बैंक हो या कोई महाजन | कुछ दिन तक पिता की दुकान
पर बैठा, कोशिश की फिर से पटरी पर लाने की | पर क्रेडिट (साख) पर सामान देने के
लिए साहूकार लोग आनाकानी करने लगे | घर में किचकिच बढ़ गई | अंत में हारकर सोम
दुकान पर बैठना छोड़ कर नौकरी की तलाश शुरू कर दी | बेहतर पढ़ाई और प्रतिस्पर्धी
परीक्षा में अच्छे रैंक के चलते नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई | बेटे की नौकरी
लग जाने से परिवार में आजीविका का एक मुकम्मल साधन तो हो गया लेकिन घर मोहल्ले को
छोड़ दूर शहर जाना पड़ा | माँ-बेटी पीछे छूट गए | लाजो ग्यारह की थी और वहीं पड़ोस के
स्कूल में पढ़ती रही | सोम प्रकाश नियमित रूप से माँ को पैसे भेजते रहे जिससे आसानी
से गुजर बसर होता रहा | लाजो के मामा माँ-बेटी का हाल-चाल लेते रहते थे और सोम
प्रकाश भी साल में कम से कम एक बार तो आते ही आते थे | माँ को अपने साथ ले जाने के
लिए बहुत कोशिश की लेकिन माँ टस से मस नहीं हुई | नौकरी करते तीन साल बीत गए | सोम
की माँ और मामा ने मिलकर सोम के लिए एक रिश्ता भी तय कर दिया | रस्म-रिवाज के
मुताबिक जल्दी से शादी भी हो गई | लाजो ने अब बारहवीं पास कर
ली थी | आगे पढ़ाने के लिए घर से दूर भेजने के लिए माँ राज़ी नहीं हुई | लाजो को घर
पर ही बेकार बैठी रहती थी इसलिए सोम प्रकाश ने कोशिश कर के प्राइवेट बी.ए. के लिए
फॉर्म भरवा दिया | लाजो अब करीब अठारह की हो गई |
हम अपने को सामाजिक
प्राणी मानते हैं | हमने बेशक प्रगतिशील और बौद्धिक क्षमताएं हासिल की हैं | पर आज
भी क्या हम अपनी मान्यताओं को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने में नहीं लगे रहते? निश्चय
ही समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत
में है जो निरीह और कमजोर तबकों के बारे में सार्थक सोच रखते हैं तो वहीं ऐसे
लोगों की कमी नहीं है जो इनका शोषण करने में कतई कोताही नहीं करते | लाजो भी इसका
शिकार हो रही थी | मोहल्ले के छिछोरे उसके घर पर किसी न किसी बहाने आने लगे | कोई
यह आश्वासन देने आ जाता था कि उसके रहते माँ-बेटी को कोई तकलीफ नहीं होने पाएगी |
समय-कुसमय ऐसे लोगों का आना लाजो की माँ को बिलकुल नहीं भाता था | धीरे-धीरे माँ-बेटी
का मामा के यहाँ जा कर रहने का सिलसिला बढ़ गया | और फिर तो मोहल्ले में तभी आना
होता था जब सोम प्रकाश और उसकी पत्नी शहर से आते थे | लाजो का मामा के गाँव में मन
लगने लगा | यहाँ उसे अपनी मर्जी से घूमने और लोगों से मिलने की आजादी थी | उसके मामा
का भरा पूरा परिवार था | सगे मामा तो एक ही थे लेकिन मामा के कई चचेरे भाई और उनके
बेटे बेटियाँ सभी साथ रहते थे | एक बड़ा सम्मिलित परिवार था | लेकिन लाजो का कोई भी
सगा ममेरा भाई नहीं था |
लाजो के मामा का एक
भतीजा, संतोष बाहर रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था | अभी पढ़ाई का कोर्स पूरा
होने में दो साल का वक्त था | हर सेमेस्टर के बाद वह घर आता था | संयोग से लाजो भी
मामा के घर पर ही होती थी | संतोष होनहार और प्रगतिशील विचारों का नवयुवक था | हर
बात को बेधड़क और बेबाक नजरिये से बयान करता था | साफगोई उसे पसंद थी | लाजो और
संतोष बैठ कर घंटों बात किया करते थे | संतोष अपने दोस्तों और कॉलेज के बारे में
बताता रहता था | लाजो ने एक मर्तबा उससे पूछा क्या उसके कॉलेज में लड़कियाँ भी पढ़ती
हैं और शर्मा गई | संतोष ने उसी बेबाक लहजे में जवाब दिया, “हाँ, यह तो बहुत ही आम
बात है | हम एक दूसरे से बात भी करते हैं और साथ में सैर-सपाटे के लिए भी जाते हैं
| आपस में दोस्त की तरह ही रहते हैं |” इस तरह बेबाक उत्तर पा कर लाजो उससे और
घुल-मिल गई | धीरे-धीरे दोनों की नजदीकियाँ बढ़ने लगी और फिर पता नहीं चला कब उनकी
दोस्ती और प्रगाढ़ हो गई |
प्यार और तकरार छिपाने
से कहाँ छुपते है | कुछ दिनों बाद बात जग जाहिर हो ही गई | जो भी हो चचेरे मामा का
लड़का हो या सगे मामा का, रिश्ते में तो भाई ही लगेगा! यह रिश्ता दोनों तरफ किसी को
मंजूर नहीं था | माँ का दर्द तो माँ ही समझ सकती है, उसे लाजो के पिता याद आने लगे
| यदि वे जिंदा होते तो उसे कभी भी इस जिल्लत से नहीं गुजरना पड़ता | तरह-तरह के
खयाल मन में आने लगे | एक तो मायका था, यहाँ भी इसने आने लायक नहीं छोड़ा | क्या मुंह
दिखाएगी दुनिया को अगर मोहल्ले के लोगों को पता चलेगा तो? खैर, इस रिश्ते के होने
का तो सवाल ही नहीं उठता था | आज का समय होता तो शायद परिवार वाले मान भी जाते या
लड़की-लड़का भाग कर शादी कर लेते | लाजो और उसकी माँ दोनों अपने घर आ गए | सोम
प्रकाश ने कुछ दिनों के लिए माँ को अपने पास बुला लिया | उसका तीन साल का एक लड़का
था सोचा माँ का मन लग जाएगा | अब सारी कोशिश लाजो के ब्याह के लिए होने लगी |
लाजवंती अब भी कहीं
और रिश्ते के लिए तैयार नहीं हो रही थी | कई जगह बात चलती थी लेकिन वह साफ़ मना कर
देती थी | धीरे-धीरे लाजो बाईस की हो गई | जवान बेटी घर में बैठी हो तो माँ–बाप से
ज्यादा चिन्ता पड़ोसियों को होने लगती है | मोहल्ले वालों को भी शादी में देरी वाली
बात अंततः पता चल ही गई | शिव शंकर चाचा से इस परिवार का करीबी सम्बन्ध था | सुख-दुःख
में दोनों परिवार एक दूसरे के काम आते थे | सोम के पिता के गुजरने के बाद भी सोम
प्रकाश ने चाचा से अच्छे संबंध कायम रखे हुए थे | उन्होंने कोशिश की और अपने रिश्ते
में ही एक संपन्न परिवार में लाजो का रिश्ता तय हो गया |
यह एक धरुआ शादी थी और ‘चट मंगनी पट ब्याह’ के तर्ज पर हो रही थी | हिन्दू
रीति-रिवाज में आठ तरह की विवाह पद्धतियाँ मानी गई है | इसमें सबसे ऊपर ब्रह्म-विवाह
आता है जिसमें वर-वधू दोनों पक्षों की सहमति से समान वर्ग के सुयोग्य वर से कन्या
की शादी कर दी जाती है | धरुआ विवाह भी इसी का एक छोटा संस्करण है | इसमें ज्यादा
बाराती नहीं आते हैं | वर पक्ष के कुछ खास लोगों के अलावा कुछ नजदीकी रिश्तेदार ही
शामिल होते हैं | भले ही बारातियों की संख्या कम हो लेकिन शादी तो फिर भी शादी ही
होती है | कुछ खास रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी तो शामिल होंगे ही | विवाह का
सारा खर्च और वर तथा कन्या पक्ष के सभी रस्म सोम के घर पर ही संपन्न होना था | इस
लिहाज से चाचा की हिदायत बहुत जायज थी | आखिरकार पड़ोसियों की दौड़-धूप और सहयोग से सारी
तैयारियाँ पूरी कर ली गईं | भले ही बाराती ज्यादा नहीं आने वाले थे लेकिन देन-लेन
में सोम ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी | लाजो के लिए साड़ियाँ एवं गहनों का काफी कुछ
इंतजाम पहले से ही कर रखा था | एक बहन थी वह भी बिना बाप के | इस बात का सोम पर
बहुत बड़ा बोझ था क्योंकि वह भाई और पिता दोनों की भूमिका में खरा उतरना चाहता था |
शिव शंकर चाचा भी इस बात को बखूबी जानते
थे |
अगले दिन लड़के को लेकर कुछ बाराती आ गए | पंडित, नाई और बाजे-गाजे
वाले भी आठ बजे तक पहुँच गए | गीत-गवनई के साथ ब्याह के कार्यक्रमों का शुभारंभ हो
गया | मटमंगरा, भत्तवन, मातृपूजा आदि विधियाँ संपन्न हुईं | दोपहर के भोजन के पश्चात
विवाह का मुहूरत था | वर और कन्या पक्ष के लोग विवाह के लिए मंडप में बैठ गए |
यद्यपि शुरू में लाजो इस विवाह के लिए राज़ी नहीं थी लेकिन लड़के की शिक्षा-दीक्षा
और परिवार के विषय में जान लेने के बाद उसने हाँ कर दी थी | सोम ने कन्यादान किया
और विधिवत् विवाह हो गया | शाम के भोजन के पश्चात ही विदाई का कार्यक्रम था | सब
कुछ इस तरह से नियोजित था कि सात बजे तक बारातियों की विदाई हो जाए |
शादी संपन्न होने के उपरान्त प्रथा के अनुसार दूल्हा घर के आँगन में
जाता है और उसकी विदाई और दहेज़ का अन्य सामान वहीं पर रख दिया जाता है | एक तरह से
नुमाइश की जाती है | इसके पहले कि लड़का सामने रखे अग्नि पात्र में दही-गुड़ डालने के
बाद अपना मुंह जुठारे, बाराती और घर के लोग सभी सामान का मुआयना करने के लिए
बुलाये जाते हैं | जब तक घर का कोई बुजुर्ग संकेत नहीं करता, लड़का अकसर दही-गुड
नहीं करता | खैर, बाराती तो कुछ खास थे नहीं, जो थे सभी आँगन में आ गए | सर सरी
तौर पर लड़के के बड़े भाई ने अपनी निगाह दौड़ाई | लड़के की कलाई पर घड़ी, उँगली में
अंगूठी और कोट की जेब में एक जोड़ी गोल्डेन पेन देखी | बगल में चमचमाती साइकिल रखी
हुई थी | लड़के के सामने मर्फी ट्रांजिस्टर भी देखा, लेकिन गले में चेन नहीं दिखी |
अब क्या, बड़े भाई बिफर गए | लोगों ने समझाना शुरू किया कि ठीक है समय आने पर वह भी
दे देंगे लेकिन वह एक भी सुनने के लिए तैयार नहीं थे |
शिव शंकर चाचा को बुलाया गया | उन्होंने हलके से कहा, “बच्चा तुम सब
पढ़े लिखे हो, समझदार हो, यह नादानी ठीक नहीं है | भगवान का दिया सब कुछ तुम्हारे
पास है, क्यों जिद कर रहे हो | हँसी-ख़ुशी के माहौल में ऐसा करना ठीक नहीं होता |”
बड़े भाई आज रंग में थे बोलने लगे, “फूफा जी, आजकल साइकिल, घड़ी, कलम और अंगूठी तो
सब लोग देते हैं | यहाँ तक कि छोटी जाति वाले भी आसानी से ऐसी विदाई कर देते हैं |
लोग क्या कहेंगे? अमुक के बेटे की शादी हुई, कुछ नहीं मिला | इससे अधिक सामान तो
हमारे पड़ोसी के लड़के की शादी में मिला था | अब आप ही बताओ मेरी क्या इज्जत रह जाएगी
|” चाचा को इस तरह के उत्तर की आशंका नहीं थी | अब उन्हें भी लगने लगा कि शायद यह
मेरी भी बात नहीं सुनेगा फिर भी उन्होंने समझाते हुए एक और प्रयास किया, “देखो बेटा,
हर लड़की वाला अपनी हैसियत से अधिक ही खर्च करता है और तुम तो जानते हो कि यहाँ सोम
के अलावा और कोई कमाने वाला नहीं है | फिर भी वह कह रहा है कि कुछ समय दे दो वह
चेन भी दे देगा | वैसे मेरा मानना है कि इंसान के आगे क्या मांगना, मांगना हो तो
चार भुजा के आगे मांगो | इन्होंने तो कन्या दान किया है और देने वाला छोटा नहीं
होता है | अपनी और इनकी मर्यादा का ख्याल करो और हँसी–खुशी जो मिला है उसे स्वीकार
करो |” इतना सुनने के बाद तो बड़े भाई का पारा और चढ़ गया | वे तमतमा गए और बोले,
“आप के कहने पर हम लोगों ने यह शादी मान ली | दूसरे के विषय में भाषण देना आसान
होता है | आपके ऊपर जब पड़ेगा तो देखेंगे |” इतना कहते हुए उन्होंने लड़के को आदेश दिया, “उठो, हो गई इन लोगों की |
अब एक मिनट यहाँ नहीं ठहरना है | इनका सारा सामान यहीं फेंक दो | लड़का क्या करता |
बुझे मन जो सामान मिला था वहीं छोड़कर उठ गया | बारात बिना दुल्हन की विदाई के वापस
चली गयी |
किसी भी नवविवाहिता की जिन्दगी में इससे भयानक क्या हो सकता है ! माँ
और अन्य रिश्तेदारों से विदा लेने का गम क्या कम था जो यह एक अप्रत्याशित और
असहनीय वेदना का भार चोट कर गया? उसने अपने को एक कमरे में बंद कर लिया | वह सोच
रही थी काश! विवाह के पहले ऐसा हुआ होता तो वह कुछ निर्णय कर सकती थी | फिर अचानक
उसे माँ का ख़याल आया | माँ तो निढाल पड़ी थी | अपना दर्द भूल कर वह माँ को सांत्वना
देने लगी | यही होता है बेटियाँ कितने जल्दी समझदार हो जाती हैं ! किसी ने ऐसा
सोचा नहीं था कि ख़ुशी का माहौल एक क्षण में इस तरह ग़मगीन हो जाएगा |
चाचा जी का भगीरथ प्रयास असफल हो गया | उनको अपने मान सम्मान का गम
नहीं था, वह तो सोच रहे थे कि एक नेक काम करने चले थे, उलटा ही पड़ गया | मनुष्य
किस तरह सड़ी-गली मान्यताओं से जकड़ा हुआ है | समाज में झूठी मान मर्यादा की तड़प हमें
किस प्रकार इंसानियत से मरहूम कर देती है | आज जो भी हुआ क्या उससे दोनों में से
किसी भी परिवार के सम्मान में लेशमात्र भी इजाफा
हुआ? सारी दुनिया उन्नति करे हमें मंजूर है, पर पड़ोसी का हमसे आगे निकलना हम
कतई नहीं पचा पाते | कभी-कभी तो लगता है कि यदि दो पड़ोसियों में बोलचाल कायम है और
गाहे-बगाहे वे एक दूसरे की खोज-खबर ले लेते हैं तो दोनों ही पड़ोसी सचमुच आदर्श
इंसान होंगे !
सोम को समझ नहीं आ रहा था इस समस्या से कैसे निपटे | चाचा जी से
विचार-विमर्श किया | वे भी क्या कहते, कुछ तो समाधान निकालना ही था आखिर लाजो की
जिन्दगी का सवाल था | सोम ने तय किया कि वह सम्मान के साथ सारा सामान लाजो के घर पहुँचाएगा
और लड़के के पिताजी से क्षमा याचना कर लाजो की विदाई के लिए अनुरोध करेगा | पड़ोस के
दो और लड़कों को लेकर चाचा जी के साथ अगले ही दिन अपनी पत्नी की चेन लेकर सोम लाजो
की ससुराल गया | लाजो के ससुर एक सभ्य इंसान थे उन्होंने अपने लड़के के किए पर
अफ़सोस जाहिर किया और चाचा जी से, जो रिश्ते में उनके जीजा लगते थे, माफ़ी मांगी | लाजो
की विदाई कराने वे खुद आएंगे ऐसा आश्वासन दिया |
एक हफ्ते बाद ही लाजो का पति, उसके ससुर और कुछ छोटे बच्चे लाजो को
लिवाने आ गए | लाजो की माँ के आँसू थम नहीं रहे थे | कुछ ख़ुशी के कारण और कुछ बेटी
से विछोह के कारण | शायद बेटी को विदा करने की ख़ुशी उससे बिछड़ने के गम पर बहुत
भारी थी | सोम और चाचा जी भी एक कोने में खड़े हो कर सुबक रहे थे | पर ये सारे आँसू
ख़ुशी के थे |
और लाजो विदा हो गई | पर अब साइकिल मोटर साइकिल में और मोटर साइकिल
चार पहिया में तबदील हो गई है | समाज से दहेज़ का कोढ़ साफ़ होना आज भी बाकी है |