बुजुर्गियत
-राय साहब पांडेय
कौन होते हैं ये बुजुर्ग, दिखने में
कैसे लगते हैं,
इनके बाल नहीं होते, या सफ़ेद या गंजे
होते हैं
इनका आँख का चश्मा अब नाकों पर होता
है,
चश्मे से देखते कम, आँखों से झांकते
ज्यादा हैं |
बुजुर्ग तो सभी बनते हैं, पर होना एक तपस्या
है,
जीवन के हर बीते पल समय की एक
श्रृंखला है
कल आज और कल के भोगने की एक साधना है
ज्ञानवान विद्वान नहीं पर बुद्धिमान
ज्यादा हैं |
इनके हाथ एक लाठी है जिसे पाना भी कला
है
लाठी पाना तो आसान है संभालना मुश्किल
है
लाठी को तेल पिलाना है कस कर पकड़ना है
क्योंकि फिसलने का मन पर बोझ ज्यादा
है |
इनके हाथ एक लेखनी है, श्वेत स्याही
से चलती है
श्वेत पन्नों पर लिखती है, लिखावट भी
दिखती है
सफ़ेद स्याही की बोतल को कालिख से बचाना
है
क्योंकि सफ़ेद दाढ़ी के स्याह होने का डर ज्यादा
है |
इनके हाथ कुछ कच्चे कुछ पक्के धागों
की डोर है
कुछ ऊनी हैं कुछ रेशमी और कुछ खालिस
सूती हैं
इनको पिरोना है इनका मजबूत मांजा भी
बनाना है
क्योंकि इनसे बंधी पतंग कटने का खतरा
ज्यादा है |
इनके हाथ में अपनी और औरों की निगाह
भी है
वहाँ सभी देखते हैं जहाँ भी इनकी नज़र जाती
है
कंधे पर झूलती लम्बी शाल संभालते ही
रहना है
क्योंकि खुद की निगाह में गिरने का गम
ज्यादा है |
इनके हाथ अपनी और परिवार की मान-मर्यादा
है
इनकी एक खाँसी पर सब लाठी एक साथ होती
हैं
लेखनी, स्याही, धागों, और निगाहों की
दौड़ होती है
क्योंकि उम्र-दराज और बुजुर्ग होने में
फर्क ज्यादा है |

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