सूखते आँसू
-राय साहब पांडेय
आँख दिखाने पर भी आँसू
आँख छिपाने पर भी आँसू,
चलते-फिरते, उठते-गिरते
बात-बात पर बहते आँसू |
माँ के गले लिपट कर आँसू
माँ से बिछुड़े तब भी आँसू,
भाई-बहन से चिढ़ कर रूठे
प्यार-दुलार में झरते आँसू |
साथी साथ बिना भी आँसू
लड़ते यार से छलकें आँसू,
कब कट्टी, कब पक्की ?
खेल-खेल में बहते आँसू |
शिकवा में भी निकले आँसू
प्रेम-रोग बन जाते आँसू ,
मान-मनौव्वल मीत मनों में
छुपकर बहते मीठे आँसू |
आपस में जब खटपट होती
मीठे स्वाद भी खारे लगते,
भूल के रिश्तों की कड़वाहट
पोंछे आँख के कोने आँसू |
घर-परिवार की अनबन देख
कुटिल जनों के तीर वार सुन,
समझ न आए कब क्या बोलें
मन ही मन दब जाते आँसू |
एक अकेले चल निकले थे
छूटा संग फिर हुए अकेले,
तानों की बौछार देख-सुन
घूँट-घूँट कर पीते आँसू |
हुआ सुस्त तन हाथ काँपता
शिथिल हो गईं ज्ञान
इंद्रियाँ,
शिव चरणों में बैठ-बैठ कर
सूख गए सब के सब आँसू |
जाग्रत-सुप्त-सुषुप्त दशाएँ
काया-माया छोड़ सिधारे,
परिजन के कंधों पर अर्थी
पंचतत्व में मिल गए आँसू |
शोक सभा कर स्नेही जन
ऐबों का भी गुणगान करें ,
चलते-चलते भी बह निकले
कुछ सच्चे कुछ झूठे आँसू |

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