Monday, 10 July 2017

सूखते आँसू




सूखते आँसू
-राय साहब पांडेय

आँख दिखाने पर भी आँसू
आँख छिपाने पर भी आँसू,
चलते-फिरते, उठते-गिरते
बात-बात पर बहते आँसू |

माँ के गले लिपट कर आँसू
माँ से बिछुड़े तब भी आँसू,
भाई-बहन से चिढ़ कर रूठे
प्यार-दुलार में झरते आँसू |

 साथी साथ बिना भी आँसू
लड़ते यार से छलकें आँसू,
कब कट्टी, कब पक्की ?
खेल-खेल में बहते आँसू |

शिकवा में भी निकले आँसू
प्रेम-रोग बन जाते आँसू ,
मान-मनौव्वल मीत मनों में
छुपकर बहते मीठे आँसू |

आपस में जब खटपट होती
 मीठे स्वाद भी खारे लगते,
भूल के रिश्तों की कड़वाहट
पोंछे आँख के कोने आँसू |

घर-परिवार की अनबन देख
कुटिल जनों के तीर वार सुन,
समझ न आए कब क्या बोलें
मन ही मन दब जाते आँसू |

एक अकेले चल निकले थे
छूटा संग फिर हुए अकेले,
तानों की बौछार देख-सुन
घूँट-घूँट कर पीते आँसू |

हुआ सुस्त तन हाथ काँपता
शिथिल हो गईं ज्ञान इंद्रियाँ,
शिव चरणों में बैठ-बैठ कर
  सूख गए सब के सब आँसू |  

जाग्रत-सुप्त-सुषुप्त दशाएँ
काया-माया छोड़ सिधारे,
परिजन के कंधों पर अर्थी
  पंचतत्व में मिल गए आँसू |  

शोक सभा कर स्नेही जन
ऐबों का भी गुणगान करें ,
चलते-चलते भी बह निकले
  कुछ सच्चे कुछ झूठे आँसू |  
      

No comments:

Post a Comment