Thursday, 27 July 2017



रिश्ता या पैसा
-राय साहब पांडेय
रिश्ता माया, पैसा माया
रिश्ते में पैसा जब आया
रिश्ता धूमिल बादल छाया
बिन पैसा कुछ काम न आया
उलझन में फंस गया रे भाया
चौराहे पर खड़ा मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?

पैसों से रिश्ते बन जाते
बिकते रिश्ते पैसों से
स्नेह-वैर मिलता पैसों से
दोस्त भी दुश्मन हो जाते
जब पैसा आता रिश्तों में
चौराहे पर खड़ा मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?

परिवारों में दूरी बढ़ती
डाह-जलन भी पैसों से
बनते खून के रिश्ते पानी
पैसों से माफ़ी मिल जाती
कत्ल भी होते पैसों से
चौराहे पर खड़ा मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?

पैसे-रिश्ते का खेल निराला
सोचें खोल दिलों का ताला
याद करें तब प्रथम निवाला
मन सुलझे, छटे बादल काला
पैसा नहीं, रिश्ता पहले आला !
चौराहे पर खड़ा मुसाफ़िर, अब क्या सोचे
जब रिश्ता ही हो पैसा !

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