रिश्ता या पैसा
-राय साहब पांडेय
रिश्ता माया, पैसा
माया
रिश्ते में पैसा जब
आया
रिश्ता धूमिल बादल
छाया
बिन पैसा कुछ काम न
आया
उलझन में फंस गया रे भाया
चौराहे पर खड़ा
मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?
पैसों से रिश्ते बन
जाते
बिकते रिश्ते पैसों से
स्नेह-वैर मिलता पैसों
से
दोस्त भी दुश्मन हो
जाते
जब पैसा आता रिश्तों
में
चौराहे पर खड़ा
मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?
परिवारों में दूरी
बढ़ती
डाह-जलन भी पैसों से
बनते खून के रिश्ते
पानी
पैसों से माफ़ी मिल
जाती
कत्ल भी होते पैसों
से
चौराहे पर खड़ा
मुसाफ़िर सोचे
रिश्ता या फिर पैसा?
पैसे-रिश्ते का खेल
निराला
सोचें खोल दिलों का
ताला
याद करें तब प्रथम
निवाला
मन सुलझे, छटे बादल
काला
पैसा नहीं, रिश्ता पहले आला !
चौराहे पर खड़ा
मुसाफ़िर, अब क्या सोचे
जब रिश्ता ही हो पैसा
!

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